पिलानी को बाबू घनश्याम दास बिरला (जीडी बाबू) की जन्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है। जीडी बाबू ने पिलानी को शिक्षा के क्षेत्र में सिरमौर बनाने के साथ सनातन धर्म को भी मजबूती देने का काम किया। सनातन धर्म की दिशा में भारत में ऐसा कोई धार्मिक शहर नहीं, जहां बिरला परिवार की धर्मशाला या मंदिर न हो। शिक्षा में पिलानी को भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में विशिष्ट स्थान दिलाने को लेकर बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट की स्थापना की। इस ट्रस्ट के तहत पिलानी मे बहुत सी स्कूले संचालित थी, जिसमें पिलानी व आसपास के गांवों के बच्चों के लिए यह स्कूले उच्च क्वालिटी की शिक्षा के साथ ही आम आदमी की जेब पर भी बोझ नहीं थी। समय बदला, बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट की कमान चाटुकारिता करने वालों के हाथों में आ गई, जिनको पिलानी व आसपास के गांवो की भौगोलिक स्थिति का भी ज्ञान नहीं। इनकी कारगुजारियों से बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट द्वारा संचालित अनेक स्कूले बंद हो गई और जो संचालित है, उनमें एडमिशन का टोटा पड़ गया। जहां श्रद्धेय शुकदेव पाडे जी के कार्यकाल में भारत के विभिन्न शहरों के अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना गौरव समझते थे। इसका मूल कारण कारिंदों की अकर्मण्यता व अपने चहेतो को स्कूलों में शिक्षा देने के लिए रख लिया गया। पिलानी में धर्मान्तरण का मुद्दा गरमाया हुआ है। सूत्रों की मानें तो इस काम में बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट द्वारा संचालित एक अध्यापिका और उसके पति संलिप्त पाए गये है। हिन्दू संगठनों द्वारा इसको लेकर उबाल को देखते हुए वे दोनों पिलानी छोड़कर चले गये। अब सवाल यह उठता है कि जीडी बाबू ने सनातन धर्म को मजबूती देने की दिशा में अथक प्रयास किए, उनके सपनों को धूमिल करने वालो को शिक्षा देने के लिए रखा गया। क्या ट्रस्ट के कारिंदे उनकी कारगुजारियों से अनभिज्ञ थे ? यदि नहीं तो फिर क्या मजबूरी थी कि उनको शिक्षा देने के लिए रखा गया। क्या जिले व सनातन धर्म को मानने वालों में प्रतिभा का अकाल पड़ गया, जो इनका स्थानीय पता देखकर साक्षात्कार के लिए ही नहीं बुलाया जाता। निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट की कमान आदरणीय शुकदेव पांडे जैसे विराट व्यक्तित्व के हाथों मे सौंपे जाने की जरूरत है क्योंकि वर्तमान में जिनके हाथों में कमान है, उनका शिक्षा के क्षेत्र से दूर का ही रिश्ता नहीं है ।
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