राजस्थान स्थापना दिवस समारोह

AYUSH ANTIMA
By -
0


श्रीडूंगरगढ़/बीकानेर (तोलाराम मारु): राजस्थान स्थापना दिवस के अवसर पर राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से आयोजित समारोह में "विरासत और संस्कृति का पर्व: राजस्थान दिवस" विषय पर बोलते हुए राजस्थानी भाषा के साहित्यकार डाॅ.चेतन स्वामी ने कहा कि राजस्थानी संस्कृति समूचे विश्व को अपने विशिष्ट गुणों के कारण आकर्षित करती है। इस संस्कृति ने हमे साहित्य, संगीत, मान्यताओं, मर्यादाओं, शिल्प, कला, रीति रिवाज, लोक वैविध्य और भाषा के रूप में अनमोल धरोहर सौंपी है। हमें सारी चेष्टा लगाकर अपनी विरासत के क्षय को रोकना चाहिए। समारोह की अध्यक्षता करते हुए डॉ.स्वामी ने कहा कि हमने अब तक जो मूल्य, संस्कार आदि संजोए है, वे हमारी संस्कृति के भौतिक और अभौतिक दोनों स्वरूपों को अभिव्यक्त करते हैं। उन्होंने इस बात पर अधिक जोर दिया कि संस्कृति की रक्षा के लिए राजस्थानी भाषा की संरक्षा जरूरी है अन्यथा राजस्थानी संस्कृति अपना मूल स्वरूप खो देगी। उन्होंने प्रकृति, विकृति और संस्कृति के रूपों को समझाया।
मुख्य वक्ता इतिहास के प्रोफेसर डाॅ.सुरेन्द्र डी सोनी ने कहा कि राजस्थान की संस्कृति को इसके इतिहास के पृष्ठों पर खोजना होगा। आज वक्त आ गया है इतिहास की पुनर्व्याख्या करने का। हमारे सांस्कृतिक इतिहास के बहुत सारे पक्ष अविवेचित पड़े हैं। हमारी विरासत के वे नायक जो विस्मृत है, अब उनकी चितार जरूरी है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में विषय प्रवर्तन करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सत्यनारायण योगी ने कहा कि राजस्थानी संस्कृति देश-विदेश में विख्यात है, इसके सभी समृद्ध विषयों से पूरे विश्व को अवगत कराने की आवश्यकता है।
डिंगल प्रख्यात साहित्यकार विशिष्ट वक्ता गिरधरदान रतनूं ने कहा कि राजस्थानी संस्कृति के सात मूलाधार हैं। डिंगळ के कवियों ने जो कुछ लिखा है, वह इस धरती के सांस्कृतिक और मानवीय मूल्यों को विवेचित करने वाला है। उन्होंने कई मार्मिक उदाहरणों से अपने कथन को समझाया। मुख्य अतिथि उपखंडाधिकारी उमा मित्तल ने कहा कि राजस्थान अपनी संस्कृति के कारण ही सर्वत्र शोभायमान है। राजस्थान सरकार ने आदेशित किया है कि अब से राजस्थान दिवस को चेत्र प्रतिपदा के दिन मनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि राजस्थान की संस्कृति समष्टि के तत्त्वों पर आधारित है। विषय का समाहार करते हुए संस्थाध्यक्ष श्याम महर्षि ने कहा कि राजस्थान की धरती अनूठी है। इसी धरती पर प्रथम वेद के रूप में ऋग्वेद की रचना हुई। हमारे घरों में यज्ञ के संक्षिप्त रूप को स्त्रियां आज भी बचाए हुए है। संस्कृति दुश्मन विकृति होती है, उससे बचना चाहिए। प्रारम्भ में संस्था मंत्री रवि पुरोहित ने कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत कराया। सुश्री मनसा सोनी ने काव्यपाठ किया तथा सरोज शर्मा ने विचार व्यक्त किए। समारोह का सुंदर संयोजन कवयित्री भगवती पारीक मनु ने किया। समारोह में रामचन्द्र राठी, महावीर सारस्वत, विजय महर्षि, सोहनलाल ओझा, नारायण सारस्वत, महेश जोशी, गोपीराम फूलभाटी, श्याम सुंदर आर्य, सुरेन्द्र राजपुरोहित, सत्यदीप, भंवर भोजक, शकूर बीकाणवी आदि अनेक विद्वानों ने सहभागिता निभाई।

Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!