धार्मिक उपदेश: धर्म कर्म

AYUSH ANTIMA
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मेरे मन भैया राम कहो रे राम नाम मोहिं सहज सुनावै। उनहीं चरण मन कीन रहो रे॥ राम नाम ले सन्त सुहावै, कोई कहै सब शीश सहो रे। वाही सौं मन जोरे राखो, नीके राशि लिये निबहो रे॥
कहत सुनत तेरो कछू न जावै पाप निछेदन सोई लहो रे। दादू रे जन हरि गुण गावो, कालहि जालहि फेरि दहो रे॥ अर्थात हे भाई! अपने मन से राम नाम का स्मरण करो। वह भगवान् ही मुझे समाधि में राम नाम का माहात्म्य सुनाता है। अत: तुम भी उसी के चरण कमलों में अपने मन को लगावो। राम नाम का स्मरण करने से ही महात्माओं की शोभा बढती है। अत: तुम भी उस भगवान् के नाम का ही स्मरण करो। हरि प्राप्ति के सब साधनों में हरि स्मरण ही श्रेष्ठ साधन है। तुम उसको अपने हृदय में धारण करके अपना योगक्षेम करते रहो। यदि कोई आपको कोई कटु वचन भी कहता है तो धैर्य से उसको सहन कर लो। कटु वचन सुनने से हमारी कोई क्षति नहीं होती है, प्रत्युत ऐसी सहनशीलता से तुम पाप नष्ट करने वाले परमात्मा को भी प्राप्त कर लोगे। सभी साधकों को हरि का गुण ही गाना चाहिये।
भागवत में लिखा है कि-अनजान में जान कर भगवान् का स्मरण करने वाले पुरुष के पाप तत्काल जल कर वैसे ही नष्ट हो जाते हैं, जैसे अग्नि से ईंधन जल जाता है। जो भयंकर पाप हजारों बार गंगा स्नान से तथा करोड़ों बार पुष्कर में स्नान करने से नष्ट होते हैं, वे सब भगवान् के नाम स्मरण मात्र से नष्ट हो जाते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता में लिखा है हे अर्जुन ! सब कालों में मेरा स्मरण करते हुए कर्तव्य कर्म करो।

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