तन ही राम मन ही राम, राम हृदय रमि राखि ले। मनसा राम सकल परिपूरण, सहज सदा रस चाखि ले॥ नैनां राम बैनां राम, रसनां राम सँभारि ले। श्रवणां राम सन्मुख राम, रमता राम विचारि ले॥१॥ श्वासैं राम सुरतैं राम, शब्दैं राम समाइ ले। अंतर राम निरंतर राम, आत्मराम ध्याइ ले॥२॥ सर्वैं राम संगैं राम, राम नाम ल्यौ लाइ ले। बहार राम भीतर राम, दादू गोविन्द गाइ ले॥३॥ शरीर मन बुद्धिहृदय में सर्वत्र रामरमण कर रहा हैं। अतः उसी का ध्यान करो। सहजावस्था में स्थित होकर राम नाम का रसास्वादन करो। नेत्रों से सदा सर्वत्र राम को ही देखो। कानों से राम सम्बन्धी गुणों को सुनो। सब जगह जब राम रमण कर रहा है तो जो भी तुम्हारे सामने आये उन सबको राम ही समझो। प्रतिश्वास राम का स्मरण अकरो। हरेक वृत्ति से राम का ध्यान करो क्योंकि राम सब में मौजूद हैं। ऐसे राम को परब्रह्म परमात्मा मानकर उसका आराधन करो क्योंकि राम सर्वरूप सर्वसंगी हैं। ऐसा जानकर उसी में अपनी मनोवृत्ति को लगावो। बाहर अन्दर सर्वत्र राम ही विराजते हैं। ऐसा जानकर रामनाम के स्मरण से और उसके यशोगान से उसको प्राप्त करो। महारामायण में कहा है कि – भरण-पोषण करने वाला तथा शरणागत पालक सर्वव्यापक दयालु षड्गुण ऐश्वर्यशाली राम ही साक्षात् भगवान् हैं। अध्यात्मरामायण में –
राम को सच्चिदानन्द अद्वय सर्व उपाधि निर्मुक्त तथा सत्ता मात्र और सर्वथा इन्द्रियों के अविषय परब्रह्म ही जानो। सर्वोपनिषत्सारसंग्रह में जो तत्त्वस्वरुप पुराणपुरुषोत्तम अपने तेज से सारे विश्व को प्राप्त करने वाले रविमण्डल में स्थित विश्व का ईश्वर राजाधिराज राम हैं, उसको मैं भजता हूँ। निरंजन निरीह निराश्रय कलारहित प्रपञ्च से अतीत नित्य ध्रुव निर्विषय प्रतिमारहित राम को मैं भजता हूँ।