देश में विप्र समाज को लेकर अनगिनत संगठन है लेकिन अतीत के दस सालों पर नजर डालें तो बहुत से संगठनों के सरमायदारो ने समाज को सीढ़ी बनाकर अपनी निजी महत्वाकांक्षा की पूर्ति की, जिससे समाज ठगा सा महसूस कर रहा है। इसके विपरीत एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसके रग रग से केवल और केवल समाज हित की ही आवाज सुनाई देती है। ऐसे विप्र समाज के हितैषी पंडित सुनील तिवाड़ी ने एक विशुद्ध विप्र संगठन विप्र सेना के नाम से खड़ा किया। पंडित सुनील तिवाड़ी ने निज हित को तिलांजलि देकर केवल समाज हित ही सर्वोपरि रखा। इनके नेतृत्व में बना विप्र सेना का यह विराट संगठन विप्र समाज के अंतिम छोर के विप्र को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के साथ ही समाज के राजनीतिक या सामाजिक स्तर पर पीड़ित व्यक्ति के न्याय की लड़ाई सड़क से लेकर सदन तक लड़ने के लिए कृत संकल्पित है। इस संगठन की मजबूती का ही परिणाम है कि यह संगठन विप्र समाज के लोगों के लिए सरकारो और राजनीतिक दलों के संगठनों में समाज के लोगों की हिस्सेदारी के लिए प्रभावशाली साबित हो रहा है। पिछले कालखंड में बहुत से समाजों के सम्मेलन हुए जो विवादों में घिरे रहने के साथ ही उस समाज के कथित ठेकेदारों ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति कर समाज को तिलांजलि दे दी। विप्र सेना अभी बाल्यकाल में ही है लेकिन इसके संगठन के प्रमुख पंडित सुनील तिवाड़ी के अथक परिश्रम व कुशल नेतृत्व ने पूरे देश में अपनी अलग पहचान बना ली है। पंडित सुनील तिवाड़ी ने एक कुशल रणनितिकार के तहत जयपुर में सर्व विप्र समाज का चुनावों से पहले महाकुंभ किया। उस ऐतिहासिक महाकुम्भ में पंडित सुनील तिवाड़ी की हुंकार का ही परिणाम है कि राजस्थान में विप्र समाज से भाजपा को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। यह देखा गया कि संगठनों की आड़ में किसी ने विधायक का टिकट तो किसी ने पार्षद तक की टिकट की मांग कर डाली। समाज के कथित ठेकेदारों ने केवल अपनी निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए ही समाज को मोहरा बनाया लेकिन इसके विपरीत पंडित सुनील तिवाड़ी ने समाज हित को ही सर्वोपरि माना। ऐसे समाज के मसीहा से विप्र समाज के अनगिनत संगठनों के सरमायदारो को सीख लेनी चाहिए कि संगठन मे ही शक्ति निहित है व विप्र समाज को एक जाजम पर लाने का प्रयास पंडित सुनील तिवाड़ी कर रहे हैं, उनके साथ कंथे से कंधा मिलाकर खड़े होने की जरूरत है। पंडित सुनील तिवाड़ी इस सोच से समाज हित में लगे हैं "यह मत सोचो समाज ने हमें क्या दिया लेकिन हमारी सोच यह होनी चाहिए की हम समाज को क्या दे रहे हैं।"
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