चिड़ावा पंचायत समिति प्रकरण ने भाजपा के उस दावे की पोल खोल दी है कि भाजपा बहुत ही सुसंस्कृति राजनीतिक दल है और झुंझुनूं भाजपा में एकजुटता है। झुंझुनू भाजपा के यह हालात हो गये है कि सरकार में प्रतिनिधित्व के साथ संगठन की बागडोर भी उन्हीं के हाथो में होनी चाहिए क्योंकि झुंझुनूं में चुनाव हमारे ही बलबूते पर जीते जाते हैं। अभी तो सरकार ने प्रशासनिक पदों पर से ही स्थानांतरण हटाया है, हल्दीघाटी का मैदान तो जिला तब बनेगा जब शिक्षा विभाग के स्थानांतरण पर से सरकार बैन हटायेगी। आज जो विडियो वायरल हो रहा है, उसमें पंचायत समिति की महिला सदस्य व उसके पति के साथ मारपीट झुंझुनूं विधायक महोदय व भाजपा के वरिष्ठ नेता के समक्ष हो रहा है लेकिन इसको लेकर विधायक महोदय अनभिज्ञता जाहिर कर रहे हैं और भाजपा के वरिष्ठ नेता यह कह रहे हैं कि मारपीट जैसी कोई बात ही नहीं हुई बल्कि गरमा-गरमी का माहौल जरूर था। इस प्रकरण में बबलू चौधरी और झुन्झुनू विधायक महोदय की जो अदावत चलती आ रही थी, उसकी झलक भी देखने को मिली। महिला सदस्य के पति ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार में भी हमारे काम नहीं हो रहे। किसी के स्थानांतरण कि डिजायर की गई, उसके लिए भी विधायक महोदय ने स्वीकार नहीं किया। यह उस गुटबाजी का नतीजा है। दो भाजपा के पंचायत समिति सदस्य उम्मेद धनखड़ व शीला डारा ने आरोप लगाया कि हमारे काम नहीं होते बल्कि विरोधियों के काम होते हैं, इसलिए हम इस्तीफा देने पहुंचे थे। अब इस प्रकरण को भाजपा के संगठनात्मक चुनावों के नजरिए से देखें तो इसी आंतरिक कलह के कारण झुंझुनूं की लिस्ट में देरी हो रही है। जिले में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि जो भाजपा प्रत्याशी चुनावो में हार का मुंह देख चुका, वह भी खुद को विधायक समझने लगा है। चिड़ावा की पूर्व प्रधान को लेकर भाजपा के नेता ने जो एपीसोड दिया था, वह सर्व विदित है और उसी का परिणाम है कि चिड़ावा पंचायत समिति प्रांगण विधायक महोदय व भाजपा के वरिष्ठ नेता की मौजूदगी में युद्ध का मैदान बन गया। इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि जिले के नेता सत्ता के साथ रहना चाहते हैं, उनको किसी राजनीतिक दल से कोई लेना-देना नहीं, जिस दल की सत्ता होगी, उसी का झंडा उठा लेते हैं। झुंझुनू भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष पर संगठन में पदों की बंदरबांट के आरोप लगे थे और भाजपा के वरिष्ठ व निष्ठावान कार्यकर्ताओ को दरकिनार ऐसे लोगों को संगठन में जगह दी गई, जिनका भाजपा की नितियों व सिध्दांतों से दूर का भी रिश्ता नहीं रहा। यहां तक कुछ लोगो ने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पुतला भी फूंका था, उनको भी संघठन मे पद देकर नवाजा गया था। निश्चित रूप से यह प्रकरण हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर कलंक है और यदि भाजपा ने इस पर लगाम नहीं लगाई तो जब शिक्षा विभाग के स्थानांतरण पर से बैन हटेगा तो कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल सकता है ।
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