हरियाणा विधानसभा चुनाव के बीच एक तस्वीर ने पूरे देश का ध्यान खींच लिया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि राज्य की मतदाता सूची में 25 लाख फर्जी वोट जोड़े गए हैं। उन्होंने सबूत के रूप में एक महिला की फोटो दिखाई और कहा कि यह वही चेहरा है, जो हरियाणा के दस बूथों पर बाईस बार वोट डाल चुका है। इस दावे ने जैसे ही मीडिया और सोशल मीडिया में दस्तक दी, भारतीय राजनीति के गलियारों में हलचल मच गई। कुछ ही घंटों में उस तस्वीर की सच्चाई सामने आने लगी। पता चला कि वह तस्वीर किसी भारतीय मतदाता की नहीं, बल्कि ब्राजील की एक मॉडल की है। लारिसा नेरी नाम की युवती, जिसने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि वह भारत कभी नहीं गई और न ही किसी चुनाव से उसका कोई संबंध है। उसने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर कहा, “यह पागलपन है! मेरी फोटो भारत की वोटर लिस्ट में कैसे पहुँच गई। इधर, हरियाणा में जिस महिला का नाम उस वोटर सूची में दर्ज है, जिसकी फोटो लारिसा से मिलती-जुलती बताई गई थी, वह खुद सामने आई। उन्होंने स्पष्ट कहा कि वे भारतीय नागरिक हैं, हर चुनाव में वैध रूप से मतदान करती हैं और किसी ने उनका फोटो गलत संदर्भ में पेश कर दिया है। इस बयान के बाद राहुल गांधी के “22 बार वोट” वाले आरोप पर सवाल उठने लगे। चुनाव आयोग ने भी कहा कि कांग्रेस की ओर से इस संबंध में कोई औपचारिक शिकायत नहीं आई है। आयोग का कहना है कि प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं की पहचान की जांच तय प्रक्रिया के अनुसार की जाती है, और बिना ठोस प्रमाण के ऐसे दावों को तथ्य नहीं माना जा सकता। अब सवाल यह उठता है कि यह घटना वास्तव में क्या थी। किसी मानवीय त्रुटि का परिणाम या फिर डिजिटल पहचान प्रणाली की गंभीर कमी का उदाहरण। आधुनिक भारत में वोटर लिस्ट अब डिजिटल है और प्रत्येक मतदाता का डेटा ऑनलाइन रिकॉर्ड में मौजूद है। इस प्रक्रिया ने पारदर्शिता तो बढ़ाई है, लेकिन खतरे भी साथ लाए हैं। फोटो या नाम का गलत अपलोड, किसी की तस्वीर का दुरुपयोग या फिर डेटा-लीक जैसे मामलों से लोकतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान पहुँच सकता है। ब्राजीलियन मॉडल की यह घटना इन खतरों की ओर संकेत करती है कि अब चुनावी ईमानदारी सिर्फ़ बैलेट बॉक्स की नहीं, बल्कि डेटा-सुरक्षा की भी परीक्षा है। राहुल गांधी का दावा राजनीतिक दृष्टि से प्रभावशाली था। उन्होंने एक प्रतीक के रूप में इस तस्वीर को दिखाया ताकि यह साबित किया जा सके कि देश में मतदाता सूची में हेराफेरी संभव है लेकिन जब वह प्रतीक ही संदेहास्पद निकला, तो सवाल उठे कि क्या हम राजनीति में प्रमाण से पहले प्रचार को प्राथमिकता दे रहे हैं। फिर भी, इस पूरे प्रकरण ने एक बात तय कर दी कि भारत की चुनावी प्रणाली में सुधार की आवश्यकता अब सिर्फ़ प्रशासनिक नहीं, बल्कि तकनीकी भी है। मतदाता सूची की सालाना ऑडिटिंग, AI आधारित फोटो-जांच प्रणाली, और डेटा सुरक्षा कानून जैसे उपाय अब समय की मांग बन चुके हैं। लोकतंत्र का असली सौंदर्य इसकी पवित्रता में है। यदि एक ही चेहरे के 22 वोटों की बात सुर्खियों में आ जाती है, तो यह भरोसे पर चोट है, चाहे वह दावा सत्य हो या न हो। इसलिए जरूरी है कि हर राजनीतिक दल, मीडिया संस्था और नागरिक वोट के अधिकार के साथ-साथ डेटा की पवित्रता की भी रक्षा करे। आखिरकार, लोकतंत्र सिर्फ़ चेहरों की गिनती नहीं, बल्कि विश्वास की गणना भी है और विश्वास तभी टिकेगा, जब सच और साक्ष्य दोनों साथ चलेंगे।
*@ रुक्मा पुत्र ऋषि*