राजस्थान की बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव अब एक साधारण राजनीतिक घटना नहीं रह गया है। यह चुनाव उस क्षेत्र से कहीं अधिक व्यापक अर्थ रखता है क्योंकि इसकी परछाई सीधे प्रदेश की वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के राजनीतिक भविष्य पर पड़ रही है। यह उपचुनाव इसलिए आवश्यक हुआ क्योंकि पूर्व विधायक कंवरलाल मीणा को एक पुराने आपराधिक मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद उनकी सदस्यता रद्द हो गई, पर असल कहानी यहां से शुरू होती है। अंता वही क्षेत्र है, जो झालावाड़–बारां लोकसभा क्षेत्र में आता है और यह वही इलाका है, जिसे दशकों से वसुंधरा राजे का राजनीतिक गढ़ माना जाता रहा है। यहां की हवा में उनका नाम गूंजता रहा है, उनकी रैलियों की भीड़ और संगठन पर पकड़ को लेकर यह इलाका राजे का इलाका कहलाता है। ऐसे में यदि इस बार भाजपा यहां कमजोर पड़ती है, तो यह न केवल एक सीट का नुकसान होगा, बल्कि उस गढ़ में सेंध का संकेत भी बन सकता है। भाजपा ने इस बार स्थानीय प्रत्याशी मोरपाल सुमन को मैदान में उतारा है, वहीं कांग्रेस ने अपने अनुभवी नेता प्रमोद जैन भाया पर भरोसा जताया है। दिलचस्प बात यह है कि एक तीसरा उम्मीदवार नरेश मीना भी मैदान में है, जो पारंपरिक समीकरणों को उलझा सकता है। यह तिकोना मुकाबला अंता को केवल दो दलों की लड़ाई से आगे ले जाकर एक रणनीतिक जंग बना देता है, जहाँ हर वोट मायने रखता है।
वसुंधरा राजे ने इस उपचुनाव में व्यक्तिगत दिलचस्पी ली है। उन्होंने प्रचार सभाओं में भाग लिया, स्थानीय कार्यकर्ताओं से संवाद किया और यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि भाजपा की जीत सुनिश्चित हो। यह वही सक्रियता है, जो उनके राजनीतिक भविष्य की दिशा तय कर सकती है क्योंकि बीते कुछ समय से भाजपा की राजस्थान इकाई में उनकी भूमिका को लेकर चर्चाएँ चल रही हैं। पार्टी का एक वर्ग उन्हें मार्गदर्शक के रूप में देखता है, जबकि दूसरा वर्ग उन्हें अभी भी एक मजबूत जननेता मानता है। इस उपचुनाव के परिणाम से यह स्पष्ट संकेत मिलेगा कि क्या वसुंधरा राजे अपने पुराने प्रभाव क्षेत्र में अब भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी कभी थीं। यदि भाजपा प्रत्याशी उनकी अगुवाई में यह सीट जीत लेती है, तो यह उनके समर्थकों के लिए ऊर्जा का नया संचार होगा। इससे पार्टी में उनकी रणनीतिक हैसियत और भी मजबूत होगी और 2028 की तैयारियों में उन्हें मुख्य चेहरा के रूप में पुनः देखा जा सकता है परंतु यदि हार होती है तो यह उनके प्रभाव क्षेत्र की सीमाओं का पहला संकेत बन जाएगा। विरोधी गुट इसे इस रूप में पेश कर सकते हैं कि राजे अब अपने गढ़ में भी निर्णायक नहीं रहीं और यह धारणा पार्टी के भीतर उनकी भूमिका को कमजोर कर सकती है। अंता में इस बार मुद्दे भी दिलचस्प हैं। सिंचाई, सड़क, रोजगार और स्थानीय विकास योजनाएँ ही यहां के मतदाताओं की प्राथमिकता हैं। जनता अब नेता के नाम से अधिक अपने इलाके की तरक्की पर ध्यान दे रही है। इसलिए केवल राजे का प्रभाव या भाजपा की लहर यहां निर्णायक नहीं होगी। जो प्रत्याशी स्थानीय अपेक्षाओं से जुड़ा दिखेगा, वही जनता का समर्थन पाएगा। फिर भी, यह तय है कि अंता का परिणाम केवल एक सीट का फैसला नहीं होगा, यह राजस्थान भाजपा के भीतर शक्ति-संतुलन का संकेतक बनेगा। यह बताएगा कि वसुंधरा राजे अब भी जननेता हैं या वरिष्ठ सलाहकार की भूमिका में सीमित होती जा रही हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि अंता का उप चुनाव वसुंधरा राजे के राजनीतिक भविष्य का निर्णायक अध्याय भले न बने, पर यह उस भविष्य का संकेत अवश्य देगा। जीत से उनका प्रभाव पुनः स्थापित होगा और हार से यह संदेश जाएगा कि राजे का युग अब ढलान पर है। इसलिए इस चुनाव की गिनती केवल वोटों में नहीं, बल्कि नेतृत्व की परछाइयों में की जाएगी, जहाँ हर मत, हर भाषण और हर रैली, किसी एक नेता की राजनीतिक विरासत को परिभाषित कर रही है।
*@ रुक्मा पुत्र ऋषि*