वैसे तो झुन्झुनू भाजपा संगठन का गुटबाजी से चोली दामन का साथ रहा है। उसी का नतीजा है कि जिले में भाजपा विधानसभा व लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई। मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा के असफल दौरों में भीडतंत्र का बोलबाला जरूर दिखाई दिया। इसके साथ ही स्थानीय नेताओं की फोटो सेशन को लेकर लंबी कतार भी देखने को मिली। इन सभाओं में भीड़ तंत्र को लेकर मुझे हरिशंकर परसाई की पंक्तियां अनायास ही याद आ जाती है कि जनता एक कच्चे माल की तरह है। इसको पक्का माल आज के नेता बनाते हैं लेकिन उनको यह पता नहीं कि पक्का माल बनते ही कच्चे माल का वजूद खत्म हो जाता है।
भाजपा के नवनियुक्त जिलाध्यक्ष का मनोनयन होते ही विरोध के स्वर देखने को मिले। अनगिनत धड़ों में विभक्त भाजपा जिला संगठन के चक्रव्यूह में फंसकर नवनियुक्त जिलाध्यक्ष का जहां भी प्रोग्राम होता है, वहीं चिर परिचित चेहरे उनके इर्द-गिर्द दिखलाई देते हैं। भाजपा के प्रति समर्पण भाव व पुराने भाजपाईयों को हासिए पर धकेल दिया, जिन्होंने दरी बिछाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। आयातित नेताओं को मंचों पर तवज्जो दी जाती है। सूत्रों की मानें तो इसी गुटबाजी को लेकर नवलगढ़ विधायक मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की मंड्रेला आमसभा में आमजन के बीच बैठे देखें गये। यह गुटबाजी के चक्रव्यूह का ही कमाल है कि अभी तक जिलाध्यक्ष बिना सेना की सेनापति बनी हुई है क्योंकि अभी तक अपनी जिला कार्यकारिणी घोषित नहीं कर पाई है। गुटबाजी का यह आलम है कि यदि कोई गुट जिले में आयोजन करता है तो दूसरा गुट ऐसे दूरी बना लेता है, जैसे कांग्रेस द्वारा आयोजित कार्यक्रम हो और जिलाध्यक्ष उस गुट को भी नजरंदाज करती नजर आती है। इसी गुटबाजी के परिणाम विधानसभा व लोकसभा के चुनावों में भाजपा भुगत चुकी है लेकिन शायद ही सबक लिया हो क्योंकि पुराने व निष्ठावान कार्यकर्ता किसी भी राजनीतिक दल की असली ताकत होते हैं, आया राम गया राम व आयातित नेता केवल सत्ता की मलाई तक ही सीमित रहते हैं। यदि गुटबाजी पर लगाम नहीं लगी और कार्यशैली में बदलाव नहीं हुआ तो आगामी नगर निकाय चुनाव जिलाध्यक्ष के लिए अग्नि पथ साबित होगा।