सिस्टम की लापरवाही का भयावह परिणाम

AYUSH ANTIMA
By -
0


पांच अक्टूबर की रात आठ मरीजो की मौत बनकर आई। एसएमएस जो राजस्थान का प्रतिष्ठित सरकारी अस्पताल है के ट्रामा सैंटर के आईसीयू में आग लग गई। आग की भीषणता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस आग ने आठ मरीजों को मौत के आगोश में सुला दिया व करीब पन्द्रह मरीजों की हालत गंभीर अवस्था में है। सूत्रों की मानें तो अस्पताल का कोई भी स्टाफ मौके पर नहीं आया।‌ मरीजों के परिजनों ने ही आग से बचाने के लिए बाहर ले जाने को लेकर मशक्कत करनी पड़ी। आग के कारण वार्ड में धुंआ हो गया था, जिसके कारण बाहर निकलने का रास्ता भी नहीं दिखाई दिया। यह उस सिस्टम की नाकामी थी, जिसके कारण यह हादसा हुआ। यदि आग लगते ही फायर सिस्टम उपयोग में लाया जाता तो मरीजों की जिंदगी को बचाया जा सकता था। आग लगते ही अस्पताल का स्टाफ न पहुंचने को लेकर अस्पताल प्रशासन के पास शायद ही कोई जबाब हो। इस घटना को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह ने गहरी संवेदना व्यक्त की। दुर्घटना की सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा मौके पर पहुंचे। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली व कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी मृतकों व घायलों के परिजनों से मुलाकात को लेकर अस्पताल पहुंचे। सबसे बड़ा सवाल यह रहा कि प्रदेश के चिकित्सा मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर ने घटनास्थल पर पहुंचने में बारह घंटे निकाले, जो प्रदेश की जनता के प्रति उनकी कितनी असंवेदनशीलता है, उसका प्रदर्शन है। चिर परिचित परिपाटी के अनुसार जो ऐसी दुखान्तिका को लेकर सरकारें करती आई है। मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने एक जांच समिति का गठन कर दिया, जिसकी रिपोर्ट आने पर ही दोषियों पर कार्रवाई होगी। सरकारों के ऐसे निर्णय केवल खानापूर्ति के लिए ही होते है क्योंकि जब बात ठंडे बस्ते मे चली जाती है तो आमजन उसको भूल जाता है, याद उनको रहती है, जिन्होंने अपने परिवार के सदस्य को खोया हैं। यदि ऐसी दुर्घटना किसी निजी अस्पताल मे हो जाती तो तुरंत अस्पताल के मालिक व प्रशासनिक अफसरों व डाक्टरों को गिरफ्तार कर लिया जाता लेकिन इस भयावह दुखान्तिका के करीब 12 घंटे बाद भी अस्पताल के किसी भी कार्मिक के खिलाफ कार्रवाई न होना सिस्टम पर सवाल खड़े करता है। चिर परिचित अंदाज में सरकार का यह कहना कि जांच रिपोर्ट आने के बाद ही कार्यवाही की जायेगी, एक तरह से लीपापोती करना है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार किसी भी अस्पताल कर्मचारी का नहीं पहुंचना, फायर सिस्टम को उपयोग में न लाना व आपातकालीन स्थिति में हूटर का उपयोग न होना सिस्टम की खामी को उजागर करते हैं। प्रदेश के सबसे बड़े व प्रतिष्ठित अस्पताल में ऐसी दुखान्तिका होना निश्चित रूप से सिस्टम की असफलता का परिचायक है।

Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!