अपने सामाजिक व राजनीतिक जीवन में संतों जैसा प्रभामंडल केवल दो ही नेताओं ने प्राप्त किया। एक महात्मा गांधी थे तो दूसरे लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी)। 1974 में सिंहासन ख़ाली करो जनता आती है के नारे के उद्घोष के साथ उन्होंने इंदिरा गांधी सरकार की चूले हिला दी थी। जेपी भारतीय राजनीति के कीचड में केवल सेवा के कमल को खिलाने में विश्वास रखते थे। जेपी स्वार्थ व पदलोलुपता की स्थितियों को समाप्त करने के पक्षधर थे। राष्ट्रीयता की भावना के साथ नैतिकता की स्थापना उनका लक्ष्य था। राजनिति को वे सेवा का माध्यम बनाना चाहते थे।
जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को हुआ था। जेपी समाजवादी विचारक व महान स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें व्यापक रुप से क्रान्तिकारी नेता माना जाता है। उन्होंने वंचितों व बेजुबानों के हितों की रक्षा की। वे केवल सामाजिक व आर्थिक समानता के पक्षधर थे। उनके राजनीतिक सत्ता अस्वीकार करने के लिए उन्हें लोकनायक यानी जनता के नेता के रूप में लोकप्रिय थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से मतभेद होने के बाद उनका जल्द ही दलीय राजनीति से मोह भंग हो गया व अपना जीवन विनोबा भावे के साथ भूदान आंदोलन को समर्पित कर दिया। जेपी के सक्रीय राजनीति से दूर होने के कारण छात्रों के विशेष आग्रह पर बिहार में महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी के खिलाफ आंदोलन का मार्गदर्शन कर कांग्रेस शासन को उखाड़कर फेंक दिया था।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रान्ति यानी व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन का पटना के गांधी मैदान से उद्घोष किया था। सम्पूर्ण क्रान्ति से लोकनायक का मंतव्य था भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोज़गारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना आदि ऐसी चीजों के लिए आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकती क्योंकि यह इस व्यवस्था की ही उपज है। ये तभी पूरी हो सकती है, जब सम्पूर्ण व्यवस्था में बदलाव किया जाए व आमूलचूल परिवर्तन के लिए सम्पूर्ण क्रान्ति की आवश्यकता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कहा कि सम्पूर्ण क्रान्ति में सात क्रांतियां शामिल हैं। राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौध्दिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति शामिल है। जेपी आंदोलन की उपज आज के नेता लालू प्रसाद, नितिश कुमार, स्वर्गीय रामविलास पासवान, सुशील मोदी आदि जैसे बहुत से नेता थे, जिन्होंने जेपी के सिध्दांतों को तिलांजलि देकर इसी भ्रष्ट तंत्र के अंग बन गये व राजनिती की आड़ में स्वार्थ सिद्ध किया। आज के परिवेश में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सपनों को साकार करने वाली सम्पूर्ण क्रान्ति की आवश्यकता है। यह क्रान्ति व्यक्ति सुधार से प्रारंभ होकर व्यवस्था सुधार पर केन्द्रित है। कुर्सी पर चाहे कोई भी बैठे लेकिन मूल्य प्रतिष्ठापित होने जरुरी। महान स्वतंत्रता सेनानी, भारत रत्न लोकनायक के नाम के अनुरूप आचरण किया, ऐसे भारत मां के महान सपूत लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर आयुष अंतिमा परिवार की श्रध्दापूर्वक श्रध्दांजली।