राजस्थान में राज्य सरकार ने मां स्वास्थ्य योजना लागू कर रखी है। इसके अन्तर्गत निजी अस्पतालों में 25 लाख तक का ईलाज मुफ्त है। इसी तरह केन्द्र सरकार की आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना के अन्तर्गत 5 लाख रुपए तक का ईलाज मुफ्त होता है। राज्य सरकार इन दोनों योजनाओं को लेकर बहुत प्रचारित करती रही है कि भाजपा सरकार आमजन की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बहुत गंभीर है लेकिन धरातल पर देखे तो आमजन की स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर राजस्थान के काबीना मंत्री को सड़क पर आना पड़ा। यह कैसी विडम्बना है कि एक तरफ भजन लाल शर्मा सरकार करोड़ों रूपये विज्ञापनों पर खर्च कर बहुत वाहवाही लूट रही है, इसके विपरित उन्हीं की सरकार के काबीना मंत्री डॉ.किरोड़ीलाल मीणा अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं कि राज्य में निजी अस्पताल लूट का अड्डा बने हुए है। वर्तमान में जयपुर का संतोकबा दुर्लभ अस्पताल एक मामले को लेकर सुर्खियों में है कि भुगतान न होने के कारण मरीज का शव परिजनों को सौंपने से मना कर दिया। विदित हो विक्रम मीणा जो सड़क दुघर्टना में घायल हो गये थे, उनका इलाज संतोकबा दुर्लभ अस्पताल में चल रहा था, दुर्भाग्यवश मरीज की मृत्यु हो गई। अस्पताल प्रबंधन ने 8 लाख 38 हजार का बिल मरीज के परिजनों को सौपा, जिसमें से 6 लाख 39 हजार रुपये का भुगतान कर दिया गया। शेष राशि का भुगतान न होने के कारण अस्पताल प्रशासन ने शव देने से मना कर दिया। मृतक के परिजनों का आरोप है कि अस्पताल प्रशासन ने आयुष्मान व मां स्वास्थ्य योजना के तहत भर्ती करने से मना कर दिया था। शव न मिलने के कारण परिजनों ने काबीना मंत्री डॉ.किरोड़ीलाल मीणा से मदद की गुहार लगाई। मंत्री अस्पताल पहुचे व अस्पताल प्रशासन से बातचीत की तथा नाराजगी जताते हुए कहा कि यह शव के साथ खिलवाड़ है। मंत्री किरोड़ीलाल मीणा ने कहा कि यह केवल एक परिवार का मामला नहीं है बल्कि राज्य में स्वास्थ्य तन्त्र की खामियों को उजागर करता है। उन्होंने इसको लेकर भजन लाल शर्मा सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि सरकार की मॉनिटरिंग कमजोर है, जिसके कारण राज्य में निजी अस्पताल मनमानी कर रहे हैं। निजी अस्पतालों की अनियमितताओ को लेकर मामले प्रकाश में आते रहे हैं लेकिन जांच को लेकर लीपापोती के साथ ही मामले ठंडे बस्ते में चले जाते हैं। इसका मुख्य कारण राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं पर माफिया हावी है, जिनकी राजनीतिक पकड़ काफी मजबूत है। अब सवाल यह उठता है कि जब मां स्वास्थ्य योजना व आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना के तहत निजी अस्पताल इलाज ही नहीं करते तो सरकारें इन योजनाओं को लेकर ढोल क्यों पीटती है। एक तरफ इन योजनाओं को लेकर फर्जीवाड़े की खबरें भी सुनने को मिलती है कि निजी अस्पताल इन योजनाओं के तहत फर्जी बिलों का भुगतान उठा रहे हैं तो दूसरी तरफ मरीज इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए वंचित किए जा रहे हैं। डबल इंजन सरकार को ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि इन स्वास्थय योजनाओं की सही मानिटरिंग न होने के आरोप उन्हीं की सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने लगाए हैं, जिससे मामला और भी संगीन हो जाता है। सरकार आंकड़े देकर जनहित की इतिश्री करने से बाज आए और धरातल पर ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके पुख्ता इंतजाम करें।
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