जयपुर (श्रीराम इंदौरिया): संयुक्त अभिभावक संघ द्वारा मंगलवार को जिला कलेक्टर, जयपुर के नाम एडीएम थर्ड नरेंद्र कुमार से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपते हुए आरटीई के अंतर्गत चयनित बच्चों के प्रवेश छह माह बीत जाने के बावजूद लंबित रहने, शिक्षा विभाग की निष्क्रियता एवं निजी विद्यालयों की मनमानी के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की मांग की है। इस दौरान संघ प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल, प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू, अभिभावक एडवोकेट मनोज पाटनी, विकास कुमार, लोकेश शर्मा, इमरान कुरैशी सहित अन्य अभिभावक मौजूद रहे। संघ प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने बताया कि राज्यभर में हजारों निर्धन एवं जरूरतमंद बच्चों का चयन आरटीई प्रक्रिया के तहत हुआ, लेकिन “एडमिशन कन्फर्म्ड" दिखने के बावजूद अधिकांश बच्चों का दाखिला अब तक नहीं हो पाया है। विभागीय स्तर निजी स्कूलों को अब तक आठ नोटिस जारी करने के बावजूद निजी विद्यालय खुलेआम आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं। अंतिम तीन नोटिसों में 46 निजी स्कूलों को अंतिम चेतावनी दिए हुए भी 20 दिनों से अधिक हो गए है लेकिन कार्यवाही नहीं होने से बच्चों का आधा साल खराब हो चुका है।
*संघ द्वारा उठाए गए प्रमुख बिंदु*
* शिक्षा विभाग की ओर से 8 नोटिस जारी होने के बावजूद निजी विद्यालयों ने दाखिला देने से इंकार कर रहे है।
* 46 विद्यालयों को अंतिम चेतावनी नोटिस दिए गए, परंतु किसी पर दंडात्मक कार्रवाई नहीं हुई।
* केवल जयपुर जिले में 2,800 से अधिक बच्चे पिछले 6 महीनों से प्रवेश के इंतजार में हैं।
* विभागीय निरीक्षण रिपोर्टें भी लंबित पड़ी हैं और सार्वजनिक नहीं की जा रही है।
संघ ने आरोप लगाया कि शिक्षा विभाग केवल कागजी कार्यवाही कर रहा है और आरटीई कानून की मूल भावना को कमजोर किया जा रहा है।
*संघ ने जिला कलेक्टर से मांग की है कि—*
* सभी 46 दोषी विद्यालयों की मान्यता निलंबित की जाए।
* चयनित बच्चों का 7 दिन में प्रवेश सुनिश्चित किया जाए।
* जारी नोटिसों की सार्वजनिक रिपोर्ट जारी की जाए।
* आरटीई पोर्टल पर रीयल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम लागू किया जाए।
* जिला शिक्षा अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए।
अभिषेक जैन बिट्टू ने चेतावनी दी कि यदि आगामी एक सप्ताह में ठोस निर्णय नहीं लिया गया, तो अभिभावक संघ “शिक्षा अधिकार जनbआंदोलन” प्रारंभ करने को बाध्य होगा। संघ ने यह भी कहा कि आरटीई के तहत चयनित बच्चों को विद्यालय में प्रवेश न देना संविधान द्वारा प्रदत्त शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है और जिला प्रशासन को तत्काल हस्तक्षेप कर गरीब अभिभावकों के बच्चों को न्याय दिलाना चाहिए।