झुन्झुनू में रेलवे फाटक पर बन रहा पुलिया मुंह बाए खड़ा था। आयुष अंतिमा (हिन्दी समाचार पत्र) ने अपने लेखों द्वारा इस पुलिया के निर्माण को लेकर डबल इंजन सरकार के गठन से ही प्रभारी मंत्री, मुख्यमंत्री व कैबिनेट मंत्रियों का ध्यान आकृष्ट किया कि जब भी वे दौरै पर आते हैं, यह पुलिया शायद उन्हें नहीं दिखाई देता है। विदित हो इस ओवर ब्रिज के निर्माण को लेकर भाजपा हमेशा से ही कांग्रेस पर हमलावर रही कि गहलोत सरकार की नाकामी के कारण ओवर ब्रिज का निर्माण अधूरा पड़ा है लेकिन तथ्य जब निकल कर सामने आये, जब झुंझुनूं सांसद ने एक प्रश्न द्वारा इस मुद्दे को लोकसभा में उठाया। मंत्री के जवाब से स्थिति स्पष्ट हुई कि रेलवे द्वारा अपने हिस्से का पैसा न देने के कारण यह निर्माण अधूरा पड़ा था। राज्य सरकार ने अपने हिस्से के धन से ओवर ब्रिज का निर्माण करवा दिया था, तत्पश्चात यह ओवर ब्रिज चार लेन का बनने के कारण अब रेलवे ने अपने हिस्से का पैसा आवंटित कर दिया है और जल्द ही ओवर ब्रिज का निर्माण कार्य शुरू कर दिया जायेगा। जब मामला केंद्र सरकार के अधीन हो तब विधायक इस ओवर ब्रिज के निर्माण को लेकर श्रेय लेते हैं, यह बहुत ही हास्यास्पद स्थिति लगती है। वैसे जिले के भाजपा नेताओं ने यह परिपाटी ही बना ली है कि यदि बजट घोषणा के अनुसार एक कुंए की भी स्वीकृति जारी होती है, खुद को विकास पुरूष कहकर गौरवान्वित करते हैं कि उन्हीं की अनुशंसा से यह कार्य संभव हो पाया है। उसी परिपाटी का अनुसरण विधायक महोदय कर रहे हैं कि उनके प्रयासों से इस ओवर ब्रिज का निर्माण संभव हो पाया है, जिसका भूमि पूजन समारोह आज सम्पन्न हुआ है।
जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है कि यह एक ऐतिहासिक आयोजन था लेकिन इस आयोजन में भाजपा की गुटबाजी की छाप भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। जिलाध्यक्ष व पूर्व सांसद का आयोजन में अनुपस्थित रहना आम चर्चा का विषय था। भाजपा के दूसरे गुट का इस आयोजन से दूरी बनाना स्पष्ट संकेत है कि जिला भाजपा अपनी गुटबाजी से उबर नहीं पाई है। झुंझुनूं में सरकार व संगठन में तालमेल की कमी होना, इस बात का संकेत है कि जिलाध्यक्ष इस आयोजन में नदारद रही। वैसे सरकारें श्रेय लेने के लिए लालायित रहती है कि उन्हीं की बदोलत विकास की गंगा बही है। ऐसा ही वाक्या हमें दिसम्बर में बाड़मेर रिफाइनरी को लेकर देखने को मिल सकता है। तब राजस्थान के मुखिया, मंत्री व भाजपा का प्रत्येक कार्यकर्ता सोशल मिडिया पर भाजपा सरकार को महिमान्वित करता नजर आयेगा। विदित हो बाड़मेर रिफाइनरी केवल विकास की कहानी ही नहीं बल्कि राजनीतिक रूप से श्रेय लेने की होड़ है। इस परियोजना का पहला शिलान्यास 2013 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने किया था, तब भाजपा ने इसे चुनावी स्टंट बताया था। सत्ता परिवर्तन हुआ, राजस्थान की कमान वसुंधरा राजे के हाथों में आई तब उन्होंने कांग्रेस के माडल को वित्तीय बोझ बताकर परियोजना को रोक दिया। इसका मूल उद्देश्य राजनीतिक श्रेय लेना था और 2017 में नया वित्तीय माडल लाया गया, जिसका 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुबारा शिलान्यास किया, तत्पश्चात कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसे ड्रीम प्रोजेक्ट बताया लेकिन कोविड-19 और प्रशासनिक कारणो से काम अपेक्षित गति नहीं पकड़ सका। अब वर्तमान भजन लाल शर्मा सरकार का दावा है कि 95 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है और दिसम्बर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसको राष्ट्र को समर्पित करेंगे। उस समय भी होड़ लेने के क्रम में मुख्यमंत्री, सरकार के मंत्री, विधायक व भाजपा के कार्यकर्ता सोशल मिडिया को रंग देगे कि मोदी है तो मुमकिन है, जबकि तथ्य उपरोक्त इस परियोजना को लेकर जनता की अदालत में रखे हैं ।
