साहित्य में समाज प्रतिबिंबित होता है। साहित्य सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों के अनुरूप ही लिखा जाता रहा है। साहित्य की इसी विशेषता में इसे समाज का दर्पण कहा गया है। साहित्य न केवल समाज को प्रभावित करता है बल्कि समाज से प्रभावित हुए बिना भी नही रह सकता है। साहित्य द्वारा ही किसी राष्ट्र की सभ्यता, उसके महापुरुषों के बारे में जानकारी व तीज त्यौहारो व रीति रिवाजो के बारे में जानकारी मिलती है। इसके द्वारा ही हम हमारी परम्पराओं व नैतिक व मानवीय मूल्यों से रुबरु होते है। साहित्य का शाब्दिक अर्थ देखे तो यह दो अक्षरों व हित को मिलाकर बना है। इसमें अक्षर स का अर्थ है, साथ साथ जबकि दूसरा शब्द है हित, जिसका अर्थ कल्याण से है। यानी साहित्य समाज के कल्याण के लिए बहुत उपयोगी होता है। महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य को लेकर कहा था कि जिस साहित्य में हमारी रूचि न जागे, अध्यात्मिक व मानसिक तृप्ति न मिले, हम में शक्ति और गति न पैदा हो, हमारा सौन्दर्य प्रेम की भावना न जागे, जो हम में सच्चा संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता उत्पन्न न करे, वह साहित्य हमारे लिए बेकार है। ऐसे साहित्य को किसी भी दृष्टि में साहित्य की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। कबीर दास ने अपनी वाणी और दोहो के माध्यम से समाज की परम्पराओं व मान्यताओं को उजागर किया। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों व कहानियो द्वारा समाज में फैली सामाजिक कुरितियां जैसे छूआछूत, दहेज व आर्थिक विषमता द्वारा समाज में चेतना लाने का काम किया। प्रेमचंद का साहित्य आधुनिक परिवेश में प्रासंगिक है। आदि कवि वाल्मीकि ने रामायण व तुलसीराम ने रामचरित मानस आज भी समाज के लिए पथ प्रदर्शक व प्रेरणा देने वाली अनमोल रचनाएं हैं। जिस साहित्य मे अपने समाज से जितना आदान प्रदान होगा, वह साहित्य उतना ही संजीव, संवेदनात्मक व प्रभाव शाली की श्रेणी में माना जाएगा लेकिन आधुनिक परिवेश में साहित्य के प्रति लोगों की मानसिकता में परिवर्तन के कारण साहित्यिक मूल्यों में गिरावट का दौर जारी है। फूहड़ता ने अच्छे साहित्य का स्थान ले लिया है। सरस्वती के मंचों से सरस्वती पुत्रों ने अश्लील चुटकुलों को ही साहित्य मान लिया है। सरस्वती के मंचों से सरस्वती पुत्रों की रचनाए केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि उचित उपदेश व मर्म को छूने वाली होनी चाहिए। जिस देश में साहित्यिक मूल्यों में गिरावट होगी, उसमें सामाजिक विषमता देखने को मिलेगी। इलैक्ट्रोनिक मिडिया में ऐसे फूहड सिरियलो का प्रसारण हो रहा है कि जिनको परिवार के साथ नहीं देखा जा सकता। इसलिए सरस्वती के पुत्रों को सामाजिक सरोकार को महत्व देते हुए पथ प्रदर्शक व प्रेरणादायक साहित्य की और जाना चाहिए।
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