इंतहा हो गई इंतजार की, आई न खबर मेरे यार की

AYUSH ANTIMA
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प्रदेश के आला अफसरों का धैर्य अब जवाब दे चुका है। अफसर रोज तबादला सूची का इंतजार कर रहे है लेकिन कई महीनों की लंबी प्रतीक्षा के बाद भी तबादला सूची अटकी हुई है। अफसरों में कानाफूसी है कि क्या सरकार गतिशील है या नही ? उधर, विधानसभा में बीजेपी विधायक गोपाल शर्मा का यह तंज “प्रदेश में सरकार किसकी है ?” अब अफसरशाही के गलियारों में भी गूंज रहा है। उधर, राजस्थान में प्रशासनिक और पुलिस सेवा से जुड़े अफसरों के प्रमोशन तो हो चुके हैं, लेकिन पदस्थापन आदेश अब तक जारी न होने से शासन-प्रशासन की कार्यशैली ठप पड़ चुकी है। हाल ही में आरएएस अधिकारियों को आईएएस और आरपीएस अधिकारियों को आईपीएस कैडर में पदोन्नति दी गई, मगर यह पदोन्नति फिलहाल सिर्फ कागजों पर ही सिमटी हुई है। प्रमोट हुए अधिकांश अधिकारी आज भी पुराने पद पर ही जमे हैं और नए पद पर तैनाती का इंतजार कर रहे हैं। सरकारी फाइलों में दर्ज प्रमोशन लिस्ट की चमक और जमीनी हकीकत के बीच का यह फासला जनता तक सीधा असर डाल रहा है। विभागीय कामकाज अटक गए हैं, महत्वपूर्ण फैसलों पर मुहर लगाने वाला नेतृत्व असमंजस में है और कई जगह दोहरे चार्ज की वजह से अधिकारियों पर काम का बोझ बढ़ चुका है। नतीजा यह है कि प्रशासनिक मशीनरी की रफ्तार बेहद सुस्त हो गई है। सूत्र बताते हैं कि सरकार की ओर से “वर्तमान पद पर बने रहने” का आदेश इसलिए दिया गया ताकि कैडर आवंटन और सिनियॉरिटी संबंधी औपचारिकताएँ पूरी की जा सकें लेकिन हकीकत यह है कि महीनों बीत जाने के बाद भी यह औपचारिकताएँ पूरी नहीं हो पाई हैं। अफसरों के प्रमोशन को लेकर जश्न जरूर मनाया गया, मगर पदस्थापन की फाइलें अब भी मंत्रालय की अलमारियों में धूल फांक रही हैं। इस बीच राज्य पुलिस नेतृत्व में भी उहापोह गहराई हुई है। राजीव शर्मा के डीजीपी बनने के बाद यह कयास लगाए जा रहे थे कि एडीजी और डीजी स्तर के अधिकारियों की तबादला सूची शीघ्र जारी होगी। विधानसभा का सत्र भी समाप्त हो चुका है, लिहाज़ा यह उम्मीद और मजबूत हो गई थी कि अब पुलिस महकमे में व्यापक फेरबदल होगा लेकिन हकीकत यह है कि तबादला सूची अब तक अटकी हुई है। खासकर जयपुर के पुलिस कमिश्नर को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। राजधानी में कानून-व्यवस्था की कमान किसके हाथ में होगी, इसे लेकर तरह-तरह की चर्चाएँ हैं, पर अंतिम निर्णय अब तक टलता जा रहा है। प्रशासन की स्थिति इतनी गंभीर है कि कई जिलों और विभागों में निर्णय लेने की प्रक्रिया अधर में लटक गई है। जनता को मिलने वाली बुनियादी सेवाएँ प्रभावित हो रही हैं। जिन विभागों में नए आईएएस और आईपीएस अफसरों से ऊर्जा और दिशा की उम्मीद थी, वहां फिलहाल पुराने ढर्रे पर ही काम चल रहा है। दरअसल, यह पहली बार नहीं है, जब पदोन्नति के बाद पोस्टिंग लटकाई गई हो। राजनीतिक समीकरणों, कानूनी पेचों और प्रशासनिक ढिलाई के चलते कई बार ऐसा हो चुका है लेकिन इस बार संख्या अधिक होने और हालात लंबे समय तक बने रहने से असर ज्यादा गहरा है। विपक्ष पहले ही इस मुद्दे पर सरकार पर हमला बोल चुका है और अब आम जनता भी सवाल पूछने लगी है कि आखिर कब तक फाइलों की उलझन में प्रशासन को बंधक बनाए रखा जाएगा। सरकार की चुप्पी और देरी प्रशासनिक तंत्र की साख पर चोट कर रही है। प्रमोशन आदेश अगर सिर्फ दिखावे के लिए हैं और पदस्थापन के बिना कोई व्यावहारिक असर नहीं दिखता, तो यह पूरा अभ्यास खोखला साबित होता है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या सरकार वास्तव में प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करना चाहती है या फिर राजनीतिक समीकरणों के चक्रव्यूह में फँसकर अधिकारियों को असमंजस में डालना चाहती है। हकीकत यही है कि जब तक प्रमोट हुए अधिकारियों को नई जिम्मेदारियों पर तैनात नहीं किया जाएगा और पुलिस महकमे में लंबित तबादला सूची साफ नहीं की जाएगी, तब तक प्रशासनिक मशीनरी आधे-अधूरे ढंग से ही चलती रहेगी और इस ठहराव की सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है आम जनता को, जो सरकारी दफ्तरों और थानों में कामकाज की सुस्ती का शिकार हो रही है।

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