आज शिक्षक दिवस पर एक बार फिर सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी का वह कटाक्ष याद आता है कि शिक्षक हो जाना हमारे देश का प्रिय व्यवसाय है। कहीं नौकरी न मिले तो लोग शिक्षक हो जाते हैं। यह सही है कि एक जमाने में बहुत आसान था शिक्षक होना, लेकिन अब उतना आसान भी नहीं रहा जितना समझा जाता है। इसके लिए बड़े-बड़े जतन किए जाते हैं फिर भी पार नहीं पड़ती। अब तो शिक्षक बनने के लिए अवैध और अनैतिक हथकंडे तक अपनाए जाते हैं, जो सुर्खियों में रहते हैं। इसके बावजूद शिक्षण कार्य अभी भी भारतीय समाज में एक पुनीत कार्य माना जाता है। आज शिक्षक बनना है तो पहले 50 प्रतिशत से ऊपर अंक लाकर स्नातक करना पड़ता है फिर 55 प्रतिशत से ऊपर अंक लाकर डीएलएड, बीएड पास करना होता है, वह सीट मिले तब 2-से 3 लाख रुपए खर्च करके एडमिशन लेना होता है। सरकारी सीट मिले तब भी 50 से 60 हजार रुपए लग जाते हैं। रूम रेंट, खाने का खर्च अलग उठाना पड़ता है। इसके बाद असली खेल शुरू होता है। ये सब होने के बाद सामान्य श्रेणी के हो तो 90 प्रतिशत से ऊपर अंक से टीईटी पास करो। फिर होती है वेरिफिकेशन तब कहीं जाकर आप एक शिक्षक बन पाते हो। शिक्षक भर्ती से पहले भी कई जैसे परीक्षा के लिए आंदोलन, रिजल्ट के लिए आंदोलन, शिक्षक भर्ती के लिए आंदोलन आम बात है। अगर तीन या चार साल में एक बार भर्ती आ जाये तो रिजल्ट के लिए आंदोलन, रिजल्ट आ जाये तो जोइनिंग के लिए आंदोलन, पहली या दूसरी लिस्ट में नाम आ जाये तो ठीक अन्यथा तीसरी या चौथी लिस्ट के लिए फिर से आंदोलन करना पड़ता है। फिर भी लोग समझते हैं कि शिक्षक बनना आसान है।
एक शिक्षक पर गुरुत्तर दायित्व होता है। शिक्षक बनने का मुख्य उद्देश्य ज्ञान को आगे बढ़ाना और छात्रों को शिक्षित करना है। शिक्षक छात्रों को अपने जीवन में आगे बढ्ने और समाज में प्रतिष्ठित स्थान पाने के लिए प्रेरित करते हैं और उन्हें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। शिक्षक समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और समाज को बेहतर बनाने में योगदान करते हैं। शिक्षक बनने से व्यक्तिगत विकास होता है और आत्म-संतुष्टि मिलती है। शिक्षकों को समाज में सम्मान और आदर मिलता है। शिक्षक छात्रों में नैतिक मूल्यों और संस्कारों का संचार करते हैं। शिक्षक राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और देश के भविष्य को आकार देते हैं। इन मूल्यों को ध्यान में रखते हुए, शिक्षक बनना न केवल एक व्यवसाय है, बल्कि एक पवित्र और सम्मानजनक कार्य है। एक श्रेष्ठ शिक्षक में निष्पक्षता, सत्यनिष्ठा, सम्मान, दयालुता और जिम्मेदारी जैसे चारित्रिक एवं नैतिक मूल्य महत्वपूर्ण हैं, जो छात्रों के चरित्र निर्माण और सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक होते हैं। शिक्षकों को अपने व्यवहार से एक आदर्श प्रस्तुत करना होता है। उन्हें जाति, धर्म या अन्य विविधताओं के आधार पर बिना किसी भेदभाव के सभी छात्रों को समान अवसर और न्याय सुनिश्चित करने का दृष्टिकोण रखना होता है। छात्रों के भविष्य के निर्माता के रूप में, शिक्षकों में छात्रों की भावनाओं और जरूरतों के प्रति करुणा और समझ होना आवश्यक है। आज की दुनिया में चरित्र शिक्षा एक तेजी से प्रासंगिक विषय बन गया है, क्योंकि माता-पिता और शिक्षक युवाओं में मजबूत मूल्यों को स्थापित करने के महत्व को पहचानते हैं। मूलतः चरित्र शिक्षा अकादमिक शिक्षा से आगे बढ़कर बच्चों में चरित्र, अखंडता और सहानुभूति के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करती है। ऐसे कई कारण हैं, जिनकी वजह से चरित्र शिक्षा भावी पीढ़ियों के लिए महत्वपूर्ण है। यह छात्रों को जीवन में उद्देश्य और दिशा की भावना विकसित करने में मदद करता है। सम्मान, ईमानदारी और ज़िम्मेदारी जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को सीखकर, बच्चे खुद पर और अपनी क्षमताओं पर विश्वास हासिल कर सकते हैं और जो भी ठान लें, उसे पूरा कर सकते हैं। भविष्य की ओर देखते हुए, यह स्पष्ट है कि चरित्र शिक्षा अगली पीढ़ी के नेताओं और नागरिकों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। शिक्षकों के रूप में, यह हम पर निर्भर है कि हम इसके महत्व को प्राथमिकता दें और इसे हमारी शैक्षिक और सामाजिक व्यवस्था का एक मूलभूत अंग बनाएँ। आज जब मानव समाज नैतिक पतन के दौर में है तब शिक्षक के सामने यह चुनौती है कि वह छात्रों में नैतिक समझ, नैतिक व्यवहार, सहानुभूति और सामाजिक कौशल सिखाने का अपना धर्म निभाएं। चरित्र शिक्षा में शैक्षणिक उपलब्धि, उच्च आत्म-सम्मान, लचीलापन और बेहतर सामाजिक कौशल शामिल हैं ।