भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर असमंजस के बादल अभी नहीं छंटे है। इसका मूल कारण है कि भाजपा का मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चाहता है कि नवनियुक्त अध्यक्ष व्यक्तिगत प्रभुत्व नहीं बल्कि संगठन आधारित नेतृत्व प्रदान करने वाला हो, जो भारतीय जनता पार्टी में अंदरूनी लोकतंत्र को पुनर्स्थापित कर सके। 2024 के लोकसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत से चूकने के बाद भाजपा का सत्ता पर से दबदबा खत्म हो गया है। इस समय पार्टी गठबंधन सरकार चला रही है, इससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सीधा संकेत है कि संगठन में संवाद की कमी हो गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के ताजा बयानो को सत्ता भी बढ़ती अहंकार की भावना और संवेदनहीनता की आलोचना के तौर पर देखा जा रहा है। संघ यह चाहता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अपेक्षाकृत युवा होना चाहिए। वह केवल सत्ता व संगठन का रणनितीकार न होकर वैचारिक मार्ग दर्शक भी हो। संघ ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि नया अध्यक्ष शाखा, प्रान्त प्रचारक और बूथ स्तर पर लोगो से जुड़ाव रखने वाला होना चाहिए। भाजपा ने 36 में से 28 राज्यों के नये अध्यक्ष या नियुक्त अध्यक्षों की घोषणा कर नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन को लेकर मंच तैयार कर लिया है लेकिन महत्वपूर्ण राज्यों जैसे उतर प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा व गुजरात में घोषणा होनी बाकी है। संघ प्रमुख ने 75 की चादर ओढ़ने के बाद सन्यास लेने वाले बयान ने बहुत से प्रमुख नेताओं की नींद उडा दी है, जो आजीवन कुर्सी की चाह लिए बैठे थे। अब यदि संघ के उपरोक्त मंथन को देखे तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी उसी नेता को मिलने वाली है, जिस नेता पर नागपुर का आशीर्वाद हो। अभी तक भी नागपुर से आशीर्वाद वाला नेता ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पर विराजमान होता रहा है। भाजपा कांग्रेस पर अंदरूनी लोकतंत्र व राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन को लेकर मुखर होती रही है कि गांधी परिवार से आशीर्वाद प्राप्त ही कांग्रेस अध्यक्ष बन सकता है। भाजपा को भी अपने गिरेबान में झांक कर देखना होगा कि क्या नागपुर की अनुशंसा बिना राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकता है। इसी क्रम में मुख्यमंत्री चयन को लेकर भी भाजपा की यही सोच रही है लेकिन राजस्थान के ताजा उदाहरण को देखें तो विधायक दल के नेता के चयन को लेकर बैठक महज एक औपचारिकता थी। मुख्यमंत्री का चयन भाजपा आलाकमान ने पहले ही कर लिया था और पर्ची लेकर केन्द्रीय पर्यवेक्षक राजनाथ सिंह को भेजा था। वैसे देखा जाए तो संघ यह प्रचारित करता रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक विशुद्ध सामाजिक संगठन है लेकिन नागपुर के रवैये से भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद को लेकर अभी भी असमंजस बरकरार है। मिडिया रोजाना दो तीन नामों को चलाकर ट्रायल कर रही है लेकिन फिलहाल के घटनाक्रम को देखकर यही कहा जा सकता है कि संघ और सरकार के बीच अध्यक्ष पद को लेकर टकराव है। मोदी शाह की जोड़ी कभी नहीं चाहेगी कि उसका संगठन पर से वर्चस्व खत्म हो जाए। वर्तमान अध्यक्ष नड्डा उन्हीं की चाहत है और उसी के चलते भाजपा के एक पद एक व्यक्ति के सिध्दांत को धता दिखाकर मंत्री बनाया गया है। अब यह तो आने वाला समय ही निर्धारित करेगा कि मोदी शाह की जोड़ी नागपुर पर हावी रहती है या नागपुर से ही अध्यक्ष पद की पर्ची निकलेगी।
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