*“पत्थर नहीं हूं मैं

AYUSH ANTIMA
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*“पत्थर नहीं हूं मैं”*

पत्थर नहीं हूं मैं, मुझ में भी नमी है। दर्द बयां नहीं करती, बस इतनी सी कमी है।
कभी खो जाती हूं, सपनों की बारिश में। अकसर आंखें बेवजह 
ही भीग जाती हैं।
जरूरी तो नहीं हर बारिश
की वजह सावन हो, कभी कभी संवेदनाएं भी जुड़ी होती हैं बारिश संग। बचपन में हम 
बेवजह मुस्कुराते थे, अब किसी वज़ह को छुपाने के लिए मुस्कुराते हैं। रोकर भुलाई 
जाती यादें अगर तो हंसकर कोई 
गम ना छुपाता, हद से ज्यादा अगर अंदर की घुटन हो
तो कभी कभी रोने से 
भी सुकून नहीं मिलता।
किसी को तुम्हारे आंसू,
उदासी और तुम्हारा दर्द 
नहीं दिखता, इसीलिए बारिश में भीगते हुए बहा लो उन आंसुओं को।

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