उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के त्याग पत्र को लेकर देश कांग्रेस का दोहरा चरित्र देख रहा है। राज्यसभा के सभापति कल तक कांग्रेस के आंखों की किरकिरी बने हुए थे, अचानक उनमे नेक, विनम्र व निष्पक्ष आदि गुणों की खान नजर आने लगी। विपक्ष का उनके त्याग पत्र को लेकर सवाल करना वाजिब है लेकिन कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि सदन के अंदर और बाहर उनको अपमानित करने की कसर नहीं छोड़ी। संसद परिसर में सर्वोच्च पद पर आसीन एक महानुभाव की नकल करना व प्रतिपक्ष के नेता द्वारा उसका विडियो बनाया जाना पूरे देश ने देखा था। कांग्रेस को शायद याद नहीं कि यही कांग्रेस उनके खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी भी की थी। सदन में कांग्रेस के नेता मलिकार्जुन खड़गे द्वारा उनको अपशब्द कहे जाने पर उन्होंने कहा था कि मैं किसान का बेटा हूं झुकूंगा नहीं। जगदीप धनखड़ स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते थे। वे किसी भी मुद्दे पर कुछ भी कहने मे संकोच नहीं करते थे। यहां तक उनके निशाने पर माननीय सुप्रीम कोर्ट भी रहा था। चूंकि जगदीप धनखड़ एक जाने माने वकील भी है, इसलिए उनकी संवैधानिक क्षमता पर सवाल नहीं उठाए जा सकते।
जगदीप धनखड़ के त्याग पत्र को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ नेता इसको जातिवाद के रंग मे रंगने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। निश्चित रूप से धनखड़ जाट समुदाय से आते हैं और उनका गृह राज्य राजस्थान है लेकिन अतीत को देखें तो कहीं भी यह नहीं लगता कि खुद को सर्वमान्य जाट नेता के रूप में स्थापित कर पाए। इसलिए इस प्रकरण को जातिवाद के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। भाजपा ने जब उनको बंगाल का राज्यपाल व उपराष्ट्रपति बनाया तब क्या धनखड़ जाट नहीं थे, जो आज उनके त्याग पत्र देने पर जातिवाद रंग देने की कोशिश हो रही है। हालांकि त्याग पत्र जैसा कदम उठाने को लेकर खुद जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या अमित शाह ही स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं लेकिन मिडिया ट्रायल पर नजर डालें तो उनके त्याग पत्र के पीछे जस्टिस वर्मा पर महाभियोग का नोटिस स्वीकार करना है। अब सवाल उठता है कि क्या जस्टिस वर्मा के प्रकरण में धनखड़ की कथित जल्दबाजी ही त्याग पत्र की असली वजह थी ? क्या उनका यह कदम मोदी सरकार की उस रणनीति के खिलाफ था, जिस निति के अनुसार सरकार न्याय पालिका से टकराव नहीं चाहती है । इसके साथ ही राज्यसभा की कार्यवाही में भाजपा के राज्यसभा नेता जेपी नड्डा सभापति की भूमिका में आदेश देते नजर आ रहे थे कि उन्होंने धनखड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा कि कांग्रेस के नेता का बयान रिकार्ड में नहीं जाएगा, जो मै कहूंगा वह रिकार्ड में जायेगा। इससे पहले भी धनखड़ द्वारा एक बैठक में जेपी नड्डा व किरण रिजूजी का बिना पूर्व सूचना दिए अनुपस्थिति रहना जगदीप धनखड़ को असहज स्थिति में ला दिया था। स्वास्थ्य को लेकर त्याग पत्र देना महज एक खानापूर्ति थी अन्यथा इस त्याग पत्र की पटकथा शायद लिखी जा चुकी थी। जैसे भारतीय राजनेता अपनी किताब में खुलासे करते हैं, कहीं उस किताब का इंतजार जरूर भारत के आवाम को रहेगा ।