सवर उठती है प्रकृति, जब वर्षा ऋतु का आगमन होता है, प्रेम संग बहती है हवा, जब सावन का महिना होता है। गुरू के चरणो में झुका सिर और भगवान रूद्र का अभिषेक, रक्षाबंधन मे बहनों का प्यार, तीज पर सुहागिन श्रृंगार करती हैं अनेक,
बादल की घटाएँ घोर देख, कुछ मन गौरी का कहता है, जो साजन घर से दूर बसे, तो मन विरह में रहता है। मैं सोचता हूँ कितना प्यारा वो सवेरा होता होगा, जब पूरे देश में भोले का जयकार लगता होगा। उसके लबों को शब्दों में लाकर एक मिठी राग बनानी है, वो जब भी ओढ़ती है लहरीया, बस यही सावन की निशानी है....