मौत की आगौश में जाने वाले बच्चों के परिजनों ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनका लाडला स्कूल से अब कभी वापिस नहीं आयेगा। झालावाड़ की एक सरकारी स्कूल की छत बरसात में गिरने की वजह से करीब आधा दर्जन बच्चों की मौत हो गई। सूत्रों की मानें तो गांव के लोगों ने इस जर्जर स्कूल की ईमारत को लेकर पहले ही प्रशासन को चेता दिया था लेकिन स्थानीय प्रशासन व शिक्षा विभाग ने इसको लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई। आग लगने के बाद कुंआ खोदने की कहावत को चरितार्थ करता शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का बयान आया कि प्रदेश में एक हजार सरकारी स्कूल की इमारतें जर्जर अवस्था में है, उसके लिए सरकार ने दौ सौ करोड़ रूपये की वित्तीय स्वीकृति जारी की है। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व अन्य नेताओं के बयान इस दुखद घटना को लेकर आये है लेकिन क्या यह बयान उन नौनिहालों की जिंदगी वापिस ला सकेंगे ? क्या उन नौनिहालों की किलकारियां उन सूने आंग़नो मे फिर उन बयानों से सुनाई देगी ?
सरकारी स्कूलों में इमारतों को लेकर बजट न होने का नाम लेकर पीपीपी मॉडल के तहत भामाशाहों द्वारा आर्थिक सहायता को लेकर प्रयास राजस्थान में देखने को मिल रहे हैं। देश विश्व शक्ति बनने को लेकर आउटर पर खड़ा है, ऐसे दावे सुनते सुनते कान पक गये। इसके विपरीत शिक्षा के मंदिर, जो जर्जर अवस्था में पढ़ने वाले बच्चों के लिए मौत का निमंत्रण दे रहे हैं। राजस्थान सरकार के शिक्षा के मंदिरों को लेकर संवेदनशीलता का परिचय देता है यह दुखद हादसा। इस दुखांतिका को लेकर एक ज्वलंत प्रश्न जनता की अदालत व सरकार के संज्ञान में रखा है कि आखिर इन मौतों का जिम्मेदार कौन है ?