वैसे तो भारतीय राजनीति आयाराम गया राम के सिद्धांतों पर आधारित है। भारतीय राजनीति में सिध्दांत और पार्टी के प्रति निष्ठा निजी स्वार्थ के नीचे दफन हो गई है। इस संदर्भ में राजस्थान की बात करें तो कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा का दुपट्टा इसलिए गले में डाला था कि उनको पद मिलेगा। 2023 के चुनावों से पहले कांग्रेसी नेताओं की भाजपा में जाने की लाईन लग गई थी। डेढ़ वर्ष बीत जाने के बाद ही अब भाजपा से उनका मोहभंग नजर आ रहा है क्योंकि यह नेता पद की लालसा लेकर भाजपा में गये थे। लोकसभा चुनावों से पहले जिन कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा का दामन थामा था। उनमें लालचंद कटारिया, महेन्द्र जीत सिंह मालवीय, राजेश यादव, खिलाड़ी लाल मीणा, अशोक बेनीवाल, रिछपाल मिर्धा और ज्योति मिर्धा के साथ अनेको नाम आते है। ज्योति मिर्धा की बात करें तो उनका शेखावाटी में कितना जनाधार है, उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोकसभा व राज्यसभा में भाजपा ने उम्मीदवार बनाया था लेकिन ज्योति मिर्धा को दोनो चुनावों मे जनता ने ठुकरा दिया था। जहां तक भाजपा में पद मिलने का सवाल है पुराने भाजपा नेता ही पद के लिए तरह रहे हैं। नये आयातित नेताओं को पद मिलेगा, इसमें संशय नजर आता है। प्रदेश में करीब 90 निगम और बोर्ड है लेकिन अभी तक भाजपा 10 पर ही नियुक्ति दे पाई है। बाकी के निगमों व बोर्डों पर नियुक्ति नहीं हो रही, इसका जबाब तो मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ही दे सकते हैं। लगता है इसको लेकर दिल्ली दरबार से पर्चियां आने का इंतजार इसमें देरी का कारण हो सकता है। भाजपा अध्यक्ष मदन राठोड़ भी अभी तक अपनी टीम की घोषणा नहीं कर पाए हैं। इसका मूल कारण है कि हो सकता है कार्यकारिणी के गठन के बाद भाजपा का आक्रोश बम फूट जाए। भाजपा संगठन व सरकार इस बात से इंकार करे लेकिन राजस्थान में सरकार व संगठन दोनों मे असंतोष का माहौल दिखाई दे रहा है। जब भाजपा के प्रति समर्पण भाव रखने वाले नेताओं को दरकिनार कर आयातित नेताओं को पद दिया जाता है तो उन नेताओं का तो सदमे में आना लाजिमी है, जिन्होंने भाजपा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे। यदि आयातित नेताओं को पद नहीं मिलता है तो उनका भी भाजपा से मोहभंग होना लाजिमी है। यदि झुंझुनूं जिले की बात करें तो कमोबेश भाजपा की यही स्थिति है, जो पूरे राजस्थान में है। यहां तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पुतले का दहन करने वाले नेता जो पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं। अब नई झुन्झुनू जिलाध्यक्ष के सामने अपनी टीम बनाने की सबसे बड़ी चुनौती होगी। इसको लेकर जातिगत समीकरण के साथ ही पुराने व निष्ठावान कार्यकर्ताओं को भी जगह देनी होगी। कांग्रेस से भाजपा में आने वाले नेताओं की लिस्ट बहुत लंबी है और यदि पद की लालसा लिए उन नेताओ को जगह नहीं मिलती है तो आगामी नगर निकाय चुनावों में इसके दूरगामी परिणाम होगे, वैसे भी शेखावाटी में भाजपा की स्थिति ठीक नहीं है।
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