चारागाह पर नहीं, वन भूमि पर हो पौधारोपण

AYUSH ANTIMA
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प्राकृतिक संतुलन के लिए पौधारोपण करना हर व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी है। हमारी मान्यता है कि पौधे लगाना पुण्य का काम है। यह पुण्य कमाने का वर्षाकाल अच्छा अवसर है। पौधे लगाना हमारी जीवन संस्कृति और परंपरा भी है। जहां भी उचित स्थान मिले, हम वर्षा काल  में पौधा अवश्य ही लगाए। जिले में 50 लाख पौधे लगाने और पेड़ बनने तक सार संभाल कर हम पर्यावरण, प्रकृति, धरती मां और जीव जगत की सेवा कर सकते है। हमारी धार्मिक मान्यता में एक पेड़ लगाने का बड़ा माहत्म्य बताया गया है। पौधा उचित स्थान पर पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ लगाएं। राजस्थान सरकार ने 10 करोड़, बीकानेर जिले में 50 लाख पौधे लगाने में सभी नागरिकों की समान जिम्मेदारी हैं। प्रधानमंत्री ने एक पौधा मां  के नाम लगाने का जो अभियान छेड़ा है। मां सबकी है, तो पौधे भी सभी लगाएं। जिला कलक्टर  नम्रता वृष्णि ने जो उदयरामसर चारागाह में पौधारोपण किया है, वो प्रशासन की नासमझी है। वन भूमि, सार्वजनिक एवं उचित स्थलो में पेड़ लगाए जाते हैं। चारागाह भूमि चारागाह विकास के लिए होती है। चारागाह के साथ उस पारिस्थितिकी में पनपने वाली झाड़ियां और प्राकृतिक रूप से उगने वाले पेड़ों को संरक्षण दिया जाता है तभी वह चारागाह कायम रह सकता है। अगर चारागाह क्षेत्र में पेड़ लगा दिए जाते हैं तो वहां पारिस्थितिकीय बदलाव (इकोलॉजिकल चेंज) होना अवश्यसंभावी है। कुछ वर्षों बाद वहां हो सकता है चारागाह की जगह वन क्षेत्र ले लें। इसलिए कम से कम गोचर चारागाह में तो पेड़ नहीं लगाए जाए। वहां चारागाह विकसित हो ऐसे  उपाय किए जाने चाहिए। जिला कलक्टर ने बड़ और सीईओ जिला परिषद ने गोचर में शीशम का पौधा लगाकर उचित नहीं किया है। यहां खेजड़ी लगती तो उचित रहता। इस चारागाह क्षेत्र में इस वर्ष दो हजार पौधे अगर ऐसे ही लगा दिए गए तो अगले पांच से दस वर्षों में चारागाह भूमि में कितना पारिस्थितिकीय बदलाव हो जाएगा, इसका किसी वनस्पति विशेषज्ञ से विश्लेषण करवाया जा सकता है। जो 1300 पौधे लगाए जा चुके हैं, वो विवेकहीनता का परिचायक है। सरकारी आंकड़े पूरे करने के लिए जो मन में आया बिना सोचे समझे कर दिया, यह उचित नहीं है। जिला प्रशासन को फिर सोचना चाहिए कि चारागाह भूमि को वन भूमि में बदलना कितना उचित है ? पौधारोपण का लक्ष्य पूरा करने की होड में इकोलॉजी के साथ खिलवाड़ की छूट तो नहीं दी जा सकती, फिर भी प्रशासन को करना हो तो करो। इस नासमझी के निर्णय से कौन रोकता है प्रशासन को ?

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