चाहे कोई सामाजिक संगठन हो या राजनीतिक संगठन, झूनझुनू जिले में एक प्रजाति का उदय हुआ है और वह प्रजाति है छपासिया। जैसे राजस्थान में गोडावण प्रजाति विलुप्त हो रही है लेकिन जिले में छपासिया प्रजाति में निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही है। ऐसा नहीं कि राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले ही इस प्रजाति का हिस्सा है, सामाजिक संगठनो में भी इस प्रजाति की भरमार देखी गई है। छपासियो की मूल पहचान होती है माला, दुपट्टा, साफा व फूलों का गुलदस्ता हर समय तैयार रहता है, पता नहीं कब किसी नेता या अधिकारी को उपरोक्त आभूषणों से सुसज्जित कर फोटो खिंचवाने का मौका मिल जाए। किसी अधिकारी या मंत्री के साथ ऐसे खड़े होकर फोटो आती है जैसै किसी राजा का कारिंदा खड़ा हो। फिर उस फोटो को सोशल मीडिया में डालकर महिमा मंडित किया जाता है कि अमुक राजनेता या उच्च अधिकारी से जिले की समस्याओं को लेकर गंभीर मंत्रणा की व जिले की समस्याओं से अवगत करवाया। छपास के रोगी यह महानुभाव जब कोई नेता या मंत्री जिले के दौरे पर आता है तो उसके चारों और ऐसे मंडराते हैं, जैसे गुड़ पर मधुमक्खियां मंडराती है व आम आदमी को अपनी फरियाद मंत्री तक पहुंचाने का मौका नहीं देते। इतना ही नहीं इस छपास रोग से ग्रसित उन महापुरूषों को तब तक चैन नहीं मिलता, जब तक किसी न्यूज पोर्टल या अखबार में वह फोटो न छप जाए। इन छपास रोग से ग्रसित महानुभावों की गिद्ध दृष्टि की दाद देनी होगी कि देश के किसी भी कोने में किसी युवा लड़के या लडकी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है तो उसकी फोटो के साथ समाज को गोरवान्वित क्षण वाली पोस्ट डाल दी जाती है जबकि उस प्रतिभा से शायद ही वे व्यक्तिगत रूप से परिचित हो लेकिन उस प्रतिभा ने विपरीत परिस्थितियों में जो असाधारण उपलब्धि हासिल की है, उसकी तरफ उनका ध्यान नहीं जाता है। यदि किसी अधिकारी की पदोन्नति हो जाती है तो इन छपासियो में उसकी फोटो के साथ सोशल मिडिया में प्रसारित करने की होड़ भी देखी गई है। किसी राजनेता के साथ फोटो को फोटोशॉप से एडिट करने में भी इन्होंने महारथ हासिल कर रखी है। इन छपासियो का नेटवर्क इतना मजबूत है कि जो भी बजट के प्रावधानों को लेकर वित्तिय स्वीकृति जारी होती है, उसको तुरंत लपक लेते हैं, फिर सोशल मीडिया पर इनकी पूरी टीम उनका महिम मंडन शुरू कर देती है कि नेताजी के प्रयासों से अनगिनत सौगातों की बौछार हो गई है, जो काम आज तक आजादी के बाद नहीं हुए, नेताजी के अथक प्रयासों का नतीजा है कि इतने काम साल भर में ही करवा दिए। कहीं न कहीं इन छपासियो की नजर उन अफसरों पर भी होती है जो दुधारू है। किसी भी अखबार के पाठको का अलग अलग खबरें देखने का मिजाज होता है। जैसे कुछ तीये की बैठक देखते हैं, कुछ खेल समाचार देखते हैं, कुछ रोजाना का भविष्य फल व कुछ की केवल भंडारे देखने में ही रूचि होती है। ठीक उसी प्रकार इन छपासियो की फोटो अखबार में नहीं आती तो उदास मन से अखबार को एक तरफ रख देते हैं। इस प्रजाति के महानुभावों की संख्या में निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही है।
3/related/default