गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले नेताजी आजकल बहुत चर्चा मे है, उसका मुख्य कारण है कि रोजाना यह देखने को मिल रहा है। नेताजी के प्रयास लाए रंग अब इस रंग पर चर्चा करनी जरुरी हो जाती है कि यह गिरगिट वाला आखिर कौन सा रंग है। नेताजी का एक रंग यह भी है कि कैंची जेब में लिए घूम रहे हैं न जाने कब और कहां लाल फीता दिख जाए और उस पर कैंची चलाकर वाहवाही बटोरी जा सके। कैंची चलते ही उनके शुभचिंतको की टीम सोशल मीडिया पर उनको महिमान्वित करने लगती है कि आजाद भारत के बाद नेताजी ही है, जो जनता की भावनाओं को समझते हुए उनके मुद्दों को लेकर कितने संवेदनशील है लेकिन यह कैंची जनहित के लिए चलती है या निजहित के लिए इस पर भी चर्चा करना जरुरी हो जाता है क्योंकि जो भी मूलभूत सुविधाओं के लिए सरकार पैसे का प्रावधान करती है, यह उस जनता का ही तो पैसा है, जो विभिन्न टैक्स के जरिये सरकार इकठ्ठा करती है। यदि यही पैसा जनहित की मूलभूत सुविधाओं पर खर्च करें तो क्या इसे सौगातों की संज्ञा दी जा सकती है। यह तो वही बात हो गई कि जनता का पैसा एक जेब से निकाल कर नेताजी के हवाले कर दिया क्योंकि हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ने इन सौगातों को बहुत पहले ही व्यक्त कर दिया था "ठेकेदार व अफसर का संबंध शहद व मधुमक्खी की तरह होता है, उससे उपजे मधुमास को कमीशन कहा जाता है।" यह उस मधुमास पाने की लालसा ही है कि नेताजी फीता काटने कितनी सर्दी, गर्मी या बरसात हो पहुंच ही जाते हैं। इसमें नेताजी की वह गिद्ध दृष्टि भी बहुत सहायक होती है कि जनहित व मूलभूत सुविधाओं को लेकर सरकारी आदेशो पर गड़ाए रहते हैं और उस सरकारी आदेश को ऐसे लपकते है जैसे कोई मछली आटे की गोली लपकती है। अब मछली का जिक्र आ ही गया तो नेताजी की आंख अर्जुन के लक्ष्य की तरह उस मधुमास रूपी मछली पर ही रहती है, जिसका जिक्र मुंशी प्रेमचंद ने किया था, जो आज के परिवेश में नेताजी को लेकर प्रासंगिकता रखता है। यह हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था का सौन्दर्य है कि जनता एक तरह से भेड़ होती है और हर पांच साल बाद उसी कैंची से उसकी ऊन उतार ली जाती है, जिस कैंची को जनता ने नेताजी को थमाई थी। जनता नेताजी के भाषणो पर वाहवाही उसी तरह करती है, जैसे एक कुता हाड को चूसता है। उसको लगता है कि खून हाड में से आ रहा है लेकिन खून उसके मसूड़ों से रीस रहा होता है, ठीक उसी तरह जन सुविधाओं को लेकर खुद का पैसा ही उन कार्यों पर आवंटित करती है और नेताजी सौगातों का पिटारा लेकर घूमते नजर आते हैं।
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