अंतरगति औरे कछू, मुख रसना कुछ और। दादू करणी औऱ कुछ, तिनकौं नाहीं ठौर।। संतशिरोमणि महर्षि श्रीदादू दयाल जी महाराज कहते हैं कि जिन के कथन और व्यवहार में समानता नहीं है वे दुरात्मा होते हैं। वे कहते कुछ हैं और करते कुछ और ही है। उनकी संगति नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह विश्वास के योग्य नहीं होते हैं।
महात्मा कविवर श्रीसुंदर दास जी महाराज ने लिखा है दुष्ट दूसरे के लिए हानि करने का विचार अपने मन में छुपाए रखता है परंतु उसके सामने उसकी प्रशंसा में लगा रहता है। वह उसके सामने उसकी अनुशंसा में लोटपोट होता रहता है, परंतु वह उसकी हत्या के लिए व्याघ्र की तरह उसकी पीठ को लक्ष्य बनाए रखता है। ऊपर से वह जल छिडककर अग्नि बुझाने का अभिनय करता है परंतु नीचे अंगीठी के सहारे अग्नि जलाए रखता है। अतः परमात्मा भले ही अन्य कोई भी बड़े से बड़ा संकट हमको दे, उसे हम सहन कर लेंगे परंतु किसी दुष्ट का संग हमें कभी ना मिले इसी में हित हैं।
उक्त हि वेदांतसंदर्भ शिवकवचस्तोत्र मन वाणी तथा कर्म में जिनकी एकता होती है वे महात्मा होते हैं क्योंकि वे जैसा कहते हैं वैसा ही करते हैं। जो दुरात्मा है वे मन में कुछ और ही सोचते हैं और वाणी से कुछ और ही कहते हैं और व्यवहार में कुछ और ही दिखाते हैं।