किसी पंचायत में एक सरपंच ही होता है, बाकी आम जनता होती है लेकिन डबल इंजन सरकार में आम जनता है ही नहीं, सभी सरपंच होते हैं। इस बार सरकार के गठन के बाद एक नये पद का सृजन हुआ है और वह पद हैं भाजपा प्रत्याशी। फतेहपुर से हारे हुए भाजपा प्रत्याशी की मानें तो वे यह कहते हुए नजर आ रहे हैं कि मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की नजरों मे हारा हुआ प्रत्याशी भी विधायक ही है। इसी क्रम में संगठन की बात करें तो भाजपा को कम से कम गृह जिले झुनझुनू के लिए भी स्वयंभू विधायक की तरह ही एक पद क्रमवार विधानसभा जिला अध्यक्ष की तर्ज पर सृजित करें।
अभी हाल ही में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का पिलानी दौरा था, इसमें जो नेताओं के लिए वर्चस्व की लड़ाई तो देखने को मिली ही बल्कि एक नया शब्द स्वयंभू भी निकल कर आया। इस शब्द की जननी थी चिड़ावा, जिसमें भाजपा कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अध्यक्ष के समक्ष अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा कि यहां भाजपा के कार्यकर्ताओं के काम नहीं होते हैं। स्थानीय प्रशासन में ऐसे लोगों को डिजायर करके नियुक्त कर रखा है, जो आम कार्यकर्ता की नहीं सुनते। इसको लेकर मुख्यमंत्री तक शिकायत की लेकिन कुछ स्वयंभू नेता जयपुर जाकर या आप जैसों से सिफारिश करवा कर उनको यहां रख रखा है। अब यदि उक्त प्रकरण का पोस्टमार्टम करे तो कार्यकर्ताओं का जो असंतोष दिखाई दिया है, यह उस गुटबाजी का गुबार है, जिस धड़ेबाजी के लिए यह जिला विख्यात रहा है। आमजन के लिए जिन अधिकारियों से काम पड़ता है, उसमें नगर पालिका, अस्पताल, बिजली विभाग व जलदाय विभाग है। जलदाय विभाग की कार्यशैली का बखान तो रोज पानी को लेकर हाहाकार मचा रहता है, उससे लगाया जा सकता है। नगर पालिका व अस्पताल को लेकर कार्यकर्ताओं में जो रोष भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के समक्ष देखने को मिला, उससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि इन विभागों के अफसरों पर उन स्वयंभू नेताओं का वरदहस्त है, जो अपने निजी हित के चलते उनको जयपुर जाकर रखवा रहे हैं। कहीं न कहीं उनकी डिजायर में उन स्वयंभू नेताओं का निजी हित का टकराव है, जो इन अफसरों पर प्रेम बनकर उमड़ रहा है। स्वयंभू विधायकों को लेकर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा से आग्रह किया है कि विधानसभा में इनके बैठने के स्थान की भी व्यवस्था करें तो उनको भी हारने के बाद भी विधायक होने की फिलिंग का अहसास तो होगा।