लपको की तरह उगाही कर रहे है यूट्यूबर्स: सरकारी अनदेखी के कारण लुटेरो की पौबारह

AYUSH ANTIMA
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जयपुर (महेश झालानी): आजकल यूट्यूब और अन्य डिजिटल चैनलों की भरमार हो गई है। सब्जी के ठेलों की मानिंद यूट्यूबर्स दिखाई देने लगे है। चैनलों के संचालक और संवाददाता पांच सौ-हजार वाला माइक लिए सरकारी कार्यालयों, अफसरों, सामाजिक समारोह, प्रेस कॉन्फ्रेंस, दुर्घटनास्थल आदि पर मंडराते देखे जा सकते है। 
ऐसे चैनलों की बढ़ती तादाद के कारण सरकारी व गैर सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न होती है। कोरोना के वक्त इन चैनल वालों ने संवेदनहीनता और अभद्रता का भौंडा प्रदर्शन कर मानवता को शर्मसार किया। यह स्थिति आज भी बरकरार है बल्कि पहले से बदतर हालात उत्पन्न होते जा रहे है। ये तथाकथित चैनल वाले बिना बुलाए प्रेस कॉन्फ्रेंस में धमक कर आयोजकों पर रौब झाड़ने का खुलेआम कारोबार करते है। अकसर यह भी देखा गया है कि कई अपराधी किस्म के लोग चैनल की आड़ में सरकारी व गैर सरकारी लोगों को ब्लैकमेल करने का धंधा कर रहे है। चूँकि टीवी से सभी लोग खौफ खाते है, इसलिए पुलिसकर्मी और अन्य अफसर इनकी मांग पूरी करने के लिए विवश है। अनेक नेता ऐसे अपराधी तत्वों को पोषित कर इनको बढ़ावा दे रहे है। कई लोग तो आई कार्ड बांटने के नाम पर हजारों रुपये बटोरने में सक्रिय है। वर्तमान समय में सोशल मीडिया की अहमियत को नकारा नही जा सकता है। इसलिए यूट्यूब या अन्य डिजिटल चैनलों पर प्रतिबंध लगाना व्यवहारिक नही होगा लेकिन कुकुरमुत्तों की तरह रोज नए पैदा हो रहे चैनलों की रोकथाम के लिए सरकार को नियम बनाने चाहिए ताकि अपराधी किस्म के लोग इन चैनलों की आड़ में ब्लेकमेलिंग का धंधा नही कर सके। इसके लिए सरकार निम्न नियम बनाना अपेक्षित है ताकि कुकुरमुत्तों पर तनिक लगाम कसी जा सके। इसके लिए यह आवश्यक है कि -
चैनल संचालक तथा संवाददाता की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता स्नातक होनी चाहिए तथा उसे पत्रकारिता का न्यूनतम पन्द्रह वर्ष का सवैतनिक अनुभव होना चाहिए। इसके अलावा वे नियम लागू होने चाहिए, जो पत्रकार के अधिस्वीकरण के लिए स्थापित है। यदि कोई फर्म या कम्पनी यूट्यूब न्यूज चैनल का संचालन करती है तो उसके सभी साझेदारों को पत्रकारिता का न्यूनतम दस वर्ष का सवैतनिक अनुभव तथा जनसम्पर्क विभाग/पीआईबी से अधिस्वीकरण होना चाहिए।
अगर किसी कंपनी द्वारा ऐसे न्यूज चैनल को संचालित किया जाता है तो उसके पचास फीसदी शेयर होल्डरों को पत्रकारिता का न्यूनतम दस वर्ष का सवैतनिक अनुभव और अधिस्वीकरण आवश्यक किया जाए। सभी न्यूज चैनल जो यूट्यूब/डिजिटल उपकरण पर प्रदर्शित हो, उसका पंजीयन जनसम्पर्क विभाग और जिला दंडनायक के यहाँ होना अनिवार्य किया जाए। सभी संचालकों का पुलिस वेरिफिकेशन भी अनिवार्य करने की आवश्यकता है ताकि अपराधी तत्वों का इस पेशे में प्रवेश बन्द हो जाए। बिना अधिस्वीकृत तथाकथित पत्रकारों का पुलिस मुख्यालय और अन्य संवेदनशील विभागों में प्रतिबंधित होना चाहिए।
आजकल कुछ लोगो ने निर्माणाधीन इमारतों के फोटो/वीडियो शूट कर लूटने का कारगर धंधा बना लिया है। ऐसे ब्लैकमेलरों की नगर निगम, विकास प्राधिकरण आदि के कर्मचारियों से मिलीभगत रहती है। इन उचक्कों के कारनामों को उजागर कर ब्लैकमेल होने से बचा जा सकता है। ऐसे अनेक टैक्सी ड्राइवर, जोमैटो आदि के डिलीवरी ब्वाय आदि ने फर्जी मीडिया संस्थानों के आई कार्ड हासिल कर रखे है, जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक कोई ताल्लुक नही है। ओला, उबर आदि की अनेक टैक्सियों पर “प्रेस” के स्टिकर चिपके हुए है, इनकी जांच अपेक्षित है। पुलिस अधिकारियों को चाहिए कि ऐसे धंधेबाजों की जांच के लिए अधीनस्थों को यथोचित निर्देश दिए जाने चाहिए। फर्जी और गैर कानूनी रूप से संचालित चैनलों के वैध रूप से संचालन के लिए एक कमेटी का गठन किया जाए, जो व्यवहारिक नियम बनाकर सरकार को सुझाव दे। उम्मीद है कि भारत सरकार और राजस्थान सरकार सहित सभी प्रदेशो की सरकार इस दिशा में अविलम्ब अपेक्षित कार्रवाई करते हुए चैनलों की आड़ में हो रहे अपराध पर रोक लगाने का ऐतिहासिक कदम उठाएंगी। यदि नियम बनाना राज्य सरकार के दायरे से बाहर है तो प्रधानमंत्री तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री को पत्र लिखने की पहल करना अपेक्षित होगा।

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