खेत न नीपजै बीज बिन, जल सींचे क्या होइ। सब निरफल दादू राम बिन, जानत है सब कोइ। संतशिरोमणि महर्षि श्री दादू दयाल जी महाराज कहते हैं कि खेत में बीज के बोये बिना जल का सींचना केवल व्यर्थ परिश्रम है तथा मूर्खता को ही बोधित करता है अथवा जैसे शरीरस्थ प्राणों को मुख से भोजन दिए बिना यदि शरीर के अंगों का भोजन से लेप करने से भोजन का दुरुपयोग ही होगा, ये अति मूर्खतापूर्ण ही बात होगी। इसी प्रकार परब्रह्म राम की उपासना के बिना केवल देवताओं की उपासना स्वर्गादि तुच्छ फल को देने वाले होते हुए भी निष्फल मानी गई है। उपनिषद में एक के जान लेने से सब कुछ जाना जाता है। घट पट आदि नामधेय तो वाणी का विकार होने से मिथ्या है, मिट्टी ही सत्य है। श्रीमद्भागवत में जैसे वृक्ष की जड़ में पानी देने पर डाली पत्ते पुष्प फल आदि का सिंचन अपने आप ही हो जाता है। प्राणों को भोजन देने से शरीर के अंगों में भोजन पहुंच जाता है। ऐसे ही ब्रह्म की उपासना से सारे देवताओं की उपासना हो जाती है। अतः ब्रह्म की उपासना ही श्रेष्ठ उपासना है।
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