धार्मिक उपदेश: धर्म कर्म

AYUSH ANTIMA
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नाँव रे नाँव रे, नाँव रे नाँव रे, सकल शिरोमणि नाँव रे, मै बलिहारी जाँव रे॥ दुस्तर तारै, पार उतारै, नरक निवारै नाँव रे॥ तारणहारा, भवजल पारा, निरमल सारा नाँव रे॥ नूर दिखावै, तेज मिलावै, ज्योति जगावै नाँव रे॥ सब कुछ दाता, अमृत राता, दादू माता नाँव रे॥ संतप्रवर श्रीदादू दयाल जी महाराज राम नाम की महिमा बता रहे हैं हे साधक ! सर्वशिरोमणि प्रभु का नाम चिन्तन कर। नाम ही सर्वश्रेष्ठ साधन है। मैं तो उस राम नाम को नमस्कार करता हूं। नाम ही विषयाशा नदी से पार करने वाला है, नरक से रक्षा करता है, नाम ही संसार में राग-द्वेष को मिटाने वाला है। शब्दसृष्टि में राम नाम ही सारभूत है। राम नाम की साधना से ही साधक के हृदय में ब्रह्म ज्योति जागती है। राम-नाम के जप से ही ब्रह्म का साक्षात्कार हो जाता है। नाम ही सब सुखों का साधन है। मैं तो उसी रामनामामृत रस का पान करके उसी रस में अनुरक्त रहता हूं।
भागवत में लिखा है कि मनुष्य मरने के समय आतुरता की स्थिति में अथवा गिरते फिसलते हुए विवश हो कर भी यदि भगवान् के किसी नाम का उच्चारण कर ले तो उसके सारे कर्मबन्धन कट जाते हैं और उत्तम से उत्तम गति प्राप्त हो जाती है परन्तु इस कलियुग में तो भगवान् की आराधना से भी विमुख हो जाते हैं। हे राजन् ! जो अपना कल्याण चाहता है, उसको सर्वात्मा श्री हरि का ही स्मरण, कीर्तन तथा उसके नाम को कानों से सुनना चाहिये, जो दिन रात राम का ही अनुशोचन तथा राम नाम जपता है, मैं उसके चरणों में नमस्कार करता हूँ। मंगलमय भगवान् के नाम की जय हो, जय हो।

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