विधायक शेखावत ने विधानसभा में दवा वितरण केन्द्रों पर फार्मासिस्टों की उपलब्धता पर पूछा था सवाल

AYUSH ANTIMA
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कोटपूतली (रमेश बंसल मुन्ना): आम तौर पर विधालय व अन्य शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा व खेल में अच्छा परफॉर्मेंंस करने वाले विधार्थियों को शिक्षकों व स्कूली संस्थाओं द्वारा उनका हौंसला बढ़ाते हुये सम्मानित किया जाता है लेकिन राजस्थान की भजन लाल सरकार के चमत्कार कुछ और है। जहाँ विधानसभा में टॉप परफॉर्मेंस देकर पार्टी व सरकार की इज्जत बढ़ाने वाले सदन के सितारे बानसूर विधायक देवी सिंह शेखावत को सरकार द्वारा सम्मानित करने की बजाय दण्डित कर डाला। हालांकि ये मामला कोटपूतली-बहरोड़ जिले में पडऩे वाली बानसूर विधानसभा सीट से जुड़ा हुआ है लेकिन विधायक शेखावत द्वारा पुछा गया सवाल पुरे प्रदेश के हितों से जुड़ा हुआ है। दरअसल इस विधानसभा में पहली बार जीतकर विधायक बने मनीष यादव, चेतन पटेल, विनोद कुमार के साथ-साथ इस बार जिले के बानसूर विधायक देवी सिंह शेखावत भी टॉप परफॉर्मर साबित हुये है। जिन्होंने इस बार बजट सत्र में कुल 10 सवाल पुछे है। इन सवालों में एक सवाल बानसूर सहित पुरे प्रदेश के हितों से जुड़ा हुआ था। दरअसल में विधायक शेखावत ने भजन लाल सरकार के स्वस्थ एवं निरोगी राजस्थान की मुहिम को आगे बढ़ाते हुये मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा वितरण योजना से सम्बंधित सवाल पुछा था। शेखावत ने विधानसभा में अतारांकित प्रश्न पुछते हुये राजकीय अस्पतालों में दवा वितरण एवं भण्डारण हेतु प्रदेश भर के जिला व उप जिला अस्पताल, सीएचसी व पीएचसी में कितने दवा वितरण केन्द्र व औषधी भण्डार संचालित है एवं उनके अनुपात में कितने फार्मासिस्टों की आवश्यकता है, कितने पद सृजित है एवं कितने फार्मासिस्ट कार्यरत है सहित यह भी पुछा था कि जिन दवा वितरण केन्द्रों पर फार्मासिस्ट नहीं है। वहाँ दवा वितरण का कार्य अन्य कर्मचारियों द्वारा किया जाता है। जिससे इस कार्य सहित उसके स्वयं के कार्य भी प्रभावित होते है। क्या भविष्य में सरकार दवा वितरण केन्द्रों व औषधी भण्डारों की संख्या के अनुपात में फार्मासिस्ट के नये पदों के सृजन का विचार रखती है। विधायक शेखावत के अपने इस प्रश्न के माध्यम से प्रदेश भर के राजकीय अस्पतालों में दवा वितरण की योजना को सुचारू किये जाने को लेकर सवाल पुछा था। लेकिन अपनी योग्यता से सवाल पुछ कर सदन के सितारे बने विधायक शेखावत का यह अंदाज शायद भजन लाल सरकार या फिर उच्चाधिकारियों को पसंद नहीं आया। इसे महज इत्तेफाक ही कहा जाये या उच्चाधिकारियों की सोची समझी कारगुजारी, कि जहाँ फार्मासिस्टों व सहायकों की संख्या को बढ़ाया जाना चाहिये। वहीं चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के निदेशक (जन.स्वा.) रवि प्रकाश शर्मा ने उप जिला अस्पताल, बानसूर में डीडीसी हैल्पर के स्वीकृत दो पदों में से एक को विलोपित कर दिया। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में सीएचसी से बढ़ाकर बानसूर अस्पताल को एसडीएच का दर्जा दिया गया था। वर्तमान में अस्पताल में 04 नियमित व 01 आपातकालीन डीडीसी संचालित है। जिनमें दवा का वितरण महज एक फार्मासिस्ट व एक हैल्पर के भरोसे है। होना तो यह चाहिये था कि राज्य सरकार को इस अस्पताल समेत प्रदेश भर के राजकीय अस्पतालों में नि:शुल्क दवा वितरण योजना के सुचारू संचालन हेतु नये पदों का सृजन करना चाहिये था। लेकिन विधायक शेखावत के सवाल से बौखलाये विभागीय अधिकारियों ने ठीक इसके उल्टा करते हुये मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा वितरण के कार्य को सुचारू करने की बजाय बाधित करने का प्रयास किया गया है। जिससे राज्य सरकार की छवि स्पष्ट तौर पर धूमिल हुई है। जो कि जिले भर में चर्चा का विषय बनी हुई है। 

*बिना नियमों की पालना के हो रही नियुक्ति*

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार नवगठित जिले के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में भारी भ्रष्टाचार का माहौल है। जहाँ विभिन्न पीएचसी व सीएचसी पर नियमों की अवहेलना करते हुये विभिन्न पदों पर चिकित्सा प्रभारी अधिकारियों द्वारा संविदा के आधार पर नियुक्ति की जा रही है। साथ ही नियम व कानून की खुलेआम धज्जियां भी उड़ाई जा रही है। दरअसल में संविदा पर कोई भी भर्ती करने से पूर्व इसकी विज्ञप्ति देना आवश्यक है। लेकिन विज्ञप्ति तो दूर की बात नियुक्ति के बाद राज्य सरकार को सूचना तक नहीं दी जा रही। बिना आवेदन व बिना रिकॉर्ड के आधार पर विभिन्न राजकीय चिकित्सा केन्द्रों पर प्रभारी अधिकारियों द्वारा एनजीओ के माध्यम से नियुक्ति कर वेतन के भुगतान का खेल भी खेला जा रहा है। जिससे भजन लाल सरकार की छवि भी धूमिल हो रही है। वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा वितरण योजना शुरू होने के समय जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में स्वास्थ्य समिति का गठन कर प्रदेश स्तरीय अखबार में विज्ञप्ति जारी कर मैरिट व शैक्षणिक योग्यता के आधार पर फार्मासिस्टों को नियुक्ति दी गई थी। इस योजना को सफल बनाने वाले पारदर्शिता के आधार पर चयनित अभ्यर्थियों को स्थाई किये जाने की पत्रावलियां भी प्रचलित होने लगी है। लेकिन नियम व कानूनों को नजर अंदाज कर विभिन्न स्वास्थ्य केन्द्रों पर प्रभारी अधिकारियों द्वारा ही संविदा के आधार पर नियुक्ति देने के कार्य ने डबल इंजन की भजन लाल सरकार के भ्रष्टाचार खत्म करने की मुहिम पर ताला जरूर जड़ दिया है। जबकि इसी बजट 2025 में डिप्टी सीएम वित्त मंत्री दीया कुमारी ने एनजीओ के माध्यम से कार्मिकों की संविदा नियुक्ति व्यवस्था को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर कार्मिक विभाग के अधीन राजकीय संस्था का गठन कर किये जाने की घोषणा की थी। लेकिन इस और भी अभी तक कोई कदम नहीं उठाया जा सका है।

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