मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम पर किसी राजनीतिक दल का अधिपत्य नहीं

AYUSH ANTIMA
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भाजपा भगवान श्रीराम को ढाल बनाकर सत्ता में आई। भाजपा के नेता भगवान राम को एक राजनीतिक दल की बपौती बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि भाजपा भगवान श्रीराम को अपना आदर्श मानती है तो उनको यह नहीं भूलना चाहिए कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने छूआछूत को तिलांजलि देते हुए भीलनी के जूठे बेर खाये थे। भगवान श्रीराम भीलनी के जूठे बेर खाकर अपवित्र नहीं हुए तो किसी मंदिर में दलित नेता के जाने से मंदिर कैसे अपवित्र हो गया। सूत्रों की मानें तो रामनवमी के मौके पर एक मंदिर में धार्मिक आयोजन में सांसद भूपेन्द्र यादव के अलावा भाजपा नेता भी थे, इस धार्मिक आयोजन में विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने भी शिरकत की थी। इसको लेकर भाजपा के नेता ज्ञानचंद आहूजा ने बखेड़ा खड़ा कर दिया कि टीकाराम जूली के आने से श्रीराम का मंदिर अपवित्र हो गया, वह श्रीराम का मंदिर जिन्होंने भीलनी के झूठे बेर खाये थे। जब भगवान श्रीराम खुद ही भीलनी के बेर खाने से अपवित्र नहीं हुए तो टीकाराम जूली के मंदिर में प्रवेश करने पर उन्हीं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का मंदिर कैसे अपवित्र हो गया। इसका मतलब कांग्रेस ही नहीं बल्कि भाजपा के नेता ज्ञानदेव आहूजा भी रामचरित मानस को काल्पनिक मानते हैं क्योंकि श्रीराम ने उस छूआछूत को तिलांजलि दी थी, जिसको लेकर आहूजा नौटंकी कर रहे हैं। हालांकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने आहूजा को पार्टी से निलंबित कर दिया है लेकिन क्या जो धार्मिक व सामाजिक समरसता को आघात पहुंचाया है क्या उसको पूरा‌ किया जा सकेगा। जब कोई दलित दूल्हे को घोड़ी से उतार दिया जाता है तो भाजपा का दलित प्रेम उमड़ उठता है। ऐसे कृत्यो को किसी भी हालत में सही नहीं ठहराया जा सकता लेकिन भाजपा के दोहरे मापदंड पर प्रश्न चिन्ह खड़े होने लाजिमी है कि मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम को‌ एक राजनीतिक दल की बपौती समझ लिया है। ईश्वर के घर से केवल मनुष्य जन्म लेकर आता है, यह जातिगत आधार पर जो भेदभाव हो रहा है, यह व्यक्ति की संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है। ज्ञानदेव आहूजा जैसी मानसिकता वाले बहुत नेता भाजपा में मौजूद हैं, जो केवल जातिवाद व धर्म की ही बात करते हैं, उनको आमजन की मूलभूत आवश्यकताओं से कोई लेना देना नहीं। धर्म के नाम पर आडंबर करने का किसी को भी अधिकार नहीं है। किसी भी व्यक्ति की आस्था पर प्रहार करने की किसी को भी अनुमति नहीं दी जा सकती है।‌ ज्ञानदेव आहूजा शायद इस बात को लेकर खुश थे कि उनके इस कृत्य से प्रदेश व केन्द्रीय नेतृत्व बहुत खुश होगा लेकिन उनका यह दांव उल्टा पड़ा और उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

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