महिला सम्मान, सशक्तीकरण और सुरक्षा को लेकर केन्द्र सरकार बड़ी बड़ी योजनाएं चला रही है। 33 प्रतिशत महिला आरक्षण, तीन तलाक़ जैसी सामाजिक कुप्रथा को समाप्त करना, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान को महिलाओं पर केन्द्रित कर उसे प्रचारित करना, इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषणों में नारी शक्ति को विकसित भारत के अमृत स्तम्भ के रूप में बताया है। प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार महिलाओं के सशक्तीकरण बिना मानवता की प्रगति अधूरी है।
भाजपा व पूरा देश दो महापुरुषों ज्योतिबा फुले व संविधान के निर्माता व सामाजिक समरसता के प्रतीक रहे हैं। ज्योतिबा फुले ने नारी सशक्तिकरण व शिक्षा को बढ़ावा देने के अथक प्रयास किये थे। देश में प्रथम नारी शिक्षा विधालय को खोलने का श्रेय ज्योतिबा फुले को ही जाता है। भाजपा के नेता और सरकार के मंत्री बड़े बड़े आयोजन कर नारी सम्मान के प्रणेता महात्मा ज्योतिबा फुले के चित्र के आगे पुष्पांजलि देकर खुद को गौरवान्वित करने के साथ ही आमजन को उस महान समाज सुधारक व महापुरुष के विचारों को अंगीकार करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। महात्मा ज्योतिबा फुले के विचार आज भी प्रासंगिक है लेकिन क्या नेताओं ने इनके विचारों को अंगीकार किया है ? क्या महिलाओं के प्रति इनकी सोच में बदलाव आया है ? इन्हीं ज्वलंत प्रश्नों के उत्तर ढूंढने को लेकर इस लेख के माध्यम से जनता की अदालत में रखना चाहूंगा कि आखिर इन नेताओं की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महिला सम्मान व सशक्तीकरण को लेकर आखिर विपरित सोच क्यों है।
सूत्रों की मानें तो बिहार दिवस पर आयोजित एक स्नेह मिलन समारोह में राजस्थान के भाजपा अध्यक्ष मदन राठौड़ ने समस्त नारी समाज को लेकर एक आपतिजनक टिप्पणी की। उन्होंने मंच पर बैठी एक महिला नेत्री को संबोधित करते हुए कहा कि यह हमारी एक्सपर्ट क्वालिटी बैठी है, इन्हें भी बिहार में चुनाव प्रचार के लिए भेजूंगा। यह बात सुनकर पंडाल में सन्नाटा छा गया व मंच पर बैठी महिला नेत्री ने असहज भाव से अपनी हथेलियों से चेहरे को ढक लिया। विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी व संस्कारों को लेकर दंभ भरने वाली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के बयान से महिला सम्मान व सशक्तीकरण को लेकर उनकी सोच उजागर होती है।