अंतरधार्मिक विवाहों पर उठते सवाल: प्यार, परंपरा और परिवार के बीच फंसी बेटियाँ

AYUSH ANTIMA
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ग़ाज़ियाबाद/नई दिल्ली (रविन्द्र आर्य): हाल ही में सामने आए कई मामलों ने समाज के उस दर्दनाक पहलू को उजागर किया है, जहाँ बेटियाँ घर-परिवार की मर्यादा और सामाजिक मान्यताओं को पीछे छोड़कर अंतरधार्मिक विवाह की राह चुन रही हैं। विशेषकर हिंदू समुदाय की युवतियाँ जब मुस्लिम समुदाय के युवकों से विवाह करती हैं तो समाज में इसे लेकर गहरा असंतोष दिखाई देता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ मामलों में परिजनों का कहना है कि यह 'लव जिहाद' की साज़िश है, जहाँ सुनियोजित ढंग से हिंदू लड़कियों को बहलाया-फुसलाया जाता है। हाल ही में गाज़ियाबाद निवासी एक आज़ाद नाम के पिता ने जब अपनी बेटी से सवाल किया तो उसे जवाब मिला—"मेरा अब्दुल/जहीर ऐसा नहीं है", जिसने उस पिता की आँखों में आँसू ला दिए।

 *धर्म चर्चा एपिसोड 14 की प्रतिक्रिया*

धर्म चर्चा एपिसोड 14 में साध्वी सरस्वती दीदी ने 'लव जिहाद' को देश की आंतरिक सुरक्षा और हिंदू समाज के अस्तित्व के लिए एक गंभीर चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि "यह केवल विवाह का मामला नहीं है, यह सांस्कृतिक आक्रमण है, जिसका उद्देश्य हिंदू बेटियों को उनके धर्म और परिवार से काट देना है।"
दुर्गा वाहिनी (विश्व हिंदू परिषद) पश्चिम बंगाल प्रमुख रितु सिंह ने भी स्पष्ट रूप से कहा कि "लव जिहाद कोई व्यक्तिगत प्रेम प्रसंग नहीं, यह एक सुनियोजित षड्यंत्र है। समाज को संगठित होकर इसका प्रतिकार करना होगा।"

*परिजनों की व्यथा और समाज पर प्रभाव*
ऐसे मामलों में माँ-बाप अपने को ठगा हुआ महसूस करते हैं। परिवार, समाज और रिश्तेदारों के बीच उनकी प्रतिष्ठा पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाता है। एक माँ की यह चिंता कि "कहीं मेरी बेटी भी फ्रीज में 35 टुकड़े न बन जाए" आज केवल डर नहीं, बल्कि कई भयावह घटनाओं की स्मृति भी है।

*कानूनी दृष्टिकोण*
भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छा से विवाह करने का अधिकार देता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। विशेष विवाह अधिनियम, 1954 इस बात की अनुमति देता है कि कोई भी दो बालिग बिना धार्मिक बंधन के विवाह कर सकते हैं। परंतु जब यह विवाह कथित तौर पर दबाव, झूठ या छल से हो, तब यह कानून के दायरे में जांच का विषय बनता है।

*स्थानीय पुलिस और प्रशासन की भूमिका*
कई बार यह देखा गया है कि जिन थानों की सीमा में ये घटनाएं घटती हैं, वहाँ की पुलिस की भूमिका निर्णायक होती है। कुछ मामलों में त्वरित कार्रवाई होती है, जबकि कई बार परिजन शिकायत करते हैं कि पुलिस सहयोग नहीं करती। ऐसे में परिजनों को न्याय पाने के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ता है।

*समाधान*
अंतरधार्मिक विवाहों को लेकर समाज दो हिस्सों में बंटा नज़र आता है—एक ओर प्रेम और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की वकालत करने वाला वर्ग है, तो दूसरी ओर पारंपरिक मूल्यों और सांस्कृतिक अंतर को लेकर चिंतित वर्ग। लेकिन ज़रूरत है एक संतुलित दृष्टिकोण की, जिसमें ना केवल युवाओं की आज़ादी को समझा जाए, बल्कि परिवार की भावनाओं और सुरक्षा चिंताओं को भी गंभीरता से लिया जाए।

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