भारत का लोकतंत्र विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। भारतीय लोकतंत्र चार महत्वपूर्ण स्तम्भों पर टिका हुआ है विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और पत्रकारिता। बीते दशक में पत्रकारिता ने सबसे पहले सबसे तेज की प्रवृति के चलते अपनी विश्वसनीयता खो दी है। कार्यपालिका कानूनों को लागू करने को लेकर जिम्मेदार होती है, जबकि न्यायपालिका कानूनों की व्याख्या करती है और उन्हें लागू करती है कि विधायिका की नीतियां संविधान और कानून के अनुसार हो। भारत के उपराष्ट्रपति जो खुद एक प्रतिष्ठित वकील रह चुके हैं के एक बयान ने कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका में टकराव की कुछ स्थिति ला दी है। देश की सर्वोच्च संस्था, जिसको प्रजातांत्रिक तरीके से देश की जनता ने चुना है व देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा पारित व राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट वक्फ एक्ट के नये कानून पत्र सुनवाई कर रहा है। इसको लेकर जगदीप धनखड़ ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 लोकतंत्र के खिलाफ मिसाइल बन गया है। उन्होंने कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे है, देश कहां जा रहा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति संवैधानिक रूप से इस देश में सर्वोच्च पद हैं। राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण और संवर्धन की शपथ लेता है। उन्होंने कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं चाहते कि जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिये जाए। सुप्रीम कोर्ट को केवल संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है, वह भी पांच जजों की संविधान पीठ ही कर सकती है। उपराष्ट्रपति के इस बयान से कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल, जो वक्फ एक्ट संसोधन कानून के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे हैं ने कहा कि जगदीप धनखड़ का बयान असंवैधानिक है। यह सर्व विदित है कि भगवान राम के जन्म के प्रमाण मांगे गये थे तो तीन चार सौ साल पुरानी वक्फ की संपति के कागजात दिखाने मे क्या आपत्ति है। यह वही कांग्रेस है, जिसने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को ही काल्पनिक करार दिया था। इतिहास के पन्नों का अवलोकन करें तो करीब 600 साल मुगलों और उसके 200 साल अंग्रेजों की गुलामी के बाद सन् 1947 को देश आजाद हुआ था। आज भी बहुत से लोग जिवित होंगे, जिन्होंने अपनी आंखों से सन् 1947 की त्रासदी देखी थी। जब विभाजन हुआ, उस समय कितने अत्याचार किए गये। देश को आजाद हुए 78 साल हो चुके हैं लेकिन भारत एक बार फिर नाजुक दौर से गुजर रहा है। पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं पर जो अत्याचार हो रहे हैं, उसे सारा देश देख रहा है। सरेआम हिन्दुओं के कत्लेआम हो रहे हैं। वक्फ बोर्ड संशोधन एक्ट की आड़ में केवल और केवल यह दंगे 1947 के देश के विभाजन की याद दिला रहे हैं। यह कैसी विडम्बना है कि इस देश का नागरिक होने के बावजूद शरणार्थी बने हुए हैं लेकिन विपक्ष को भी सोचना होगा कि भारत के आजाद इतिहास में अब मोदी युग चल रहा है जो समय आने पर सभी का हिसाब लिया जायेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए राष्ट्र हित सर्वोपरि है तभी धारा 370, तीन तलाक़ और अब वक्फ एक्ट संसोधन कानून बनाने की पहल की है। वोट बैंक की राजनीति को दरकिनार करते हुए ऐसे कानून बनाए, जिसके लिए देश कहता था कि यदि ऐसा हुआ तो देश हल्दीघाटी बन जायेगा। देश पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं की दुर्दशा देख रहा है और कांग्रेस की उन कारगुजारियों को भी देख रहा है, जो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान के बाद बवाल कर रहे हैं ।
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