हिन्दू नववर्ष पर हर घर में भगवा ध्वज फहराने को लेकर मुहीम चली हुई है। क्या भगवा ध्वज ही एक सनातनी होने का प्रमाण पत्र है ? हम सनातनी परम्पराओं से विमुख होकर दिखावे की तरफ बढ़ रहे हैं। सनातन धर्म का प्रतीक गौवंश सड़कों पर लठ्ठ खाता घूम रहा है। झुंझुनूं जिले की बात करें तो अनगिनत गौशालाए संचालित है, जिनको प्रवासी व अप्रवासी उदारमना भामाशाह गौवंश की सेवा को लेकर आर्थिक सहायता प्रदान करते है, जिससे सनातन धर्म की वाहक गौवंश को बचाया जा सकै और जो बेसहारा गौवंश सड़कों पर घूम रहा है, उनको आसियाना मिल सके लेकिन कहीं न कहीं इन गौवंश को बेसहारा की श्रेणी में खड़े करने में हमारा भी योगदान है। जब तक गौवंश दूध देता है तब तक उसको रखा जाता है तत्पश्चात् उसको सड़कों पर छोड़ दिया जाता है। किसी भी गौशाला के लिए करोड़ों का फंड होना गौरव का विषय नहीं, यदि गौवंश उनकी आंखों के सामने बेसहारा घूम रहा हो। गौशालाएं एक तरह से वृध्दाश्रम की तरह होती है, उनमें यह नहीं देखा जाना चाहिए कि यह दुधारु है या नहीं, इसके साथ ही गौवंश में भेद भी नहीं करना चाहिए, जैसा कि कुछ गौशालाए गोवंश में भेद करती है। गौवंश को इस दुर्दशा में धकेलने के बाद हम घर पर भगवा ध्वज फहराकर सनातनी होने का ढोंग कर रहे हैं।
भगवान श्रीराम हर सनातनी के आराध्य देव हैं और इसके मंदिर के भव्य निर्माण व रामलला का विराजमान होना हर सनातनी के लिए गर्व का विषय है लेकिन हमारे गांव और शहर में जो पूजा स्थल बने हुए हैं, उनमें आरती के समय केवल पुजारी ही रहता है बाकी घंटी, घडावल व शंख बजाने का काम मशीनें करती है। क्या ऐसा आचरण करके हम सनातन धर्म को बढावा दे रहे हैं। सनातन धर्म दिखावे व आडंबर की वस्तु नहीं बल्कि अंतर्मन से उठी श्रद्धा है। जब तक हमारी युवा पीढ़ी सनातन धर्म की परम्पराओं से विमुख रहेगी तब तक सनातन धर्म को लेकर बात करना बेमानी होगा। हमें राजनीतिक दलों के बहकावे में आकर दिखावे व आडंबर के आचरण से दूर रहना होगा। राजनीतिक दलों के लिए सनातन धर्म की बात केवल सत्ता सुख का साधन मात्र है। यदि सनातन धर्म के हृदय पटल पर किसी आचरण ने ठेस पहुंचाई है तो हमारा यह आडंबर भरा आचरण ही है। सनातन धर्म को लेकर अपने परिवार में सनातन संस्कृति व परम्पराओं का बीजारोपण करें ।