पोपाबाई का राज इस बात को लेकर याद किया जाता है कि किसी अपराध में पोपाबाई का निर्णय अंतिम होता था, चाहे उससे अपराधी बच जाए और एक निरपराध को सजा मिले। राजस्थान की डबल इंजन सरकार में ऐसा ही एक वाक्या देखने को मिला, जो एक मारवाड़ी कहावत को चरितार्थ करता है कि रंडी का दंड फकीरों को। अजमेर के एक प्रतिष्ठित डाक्टर व विप्र समाज में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाले डॉ.कुलदीप शर्मा के साथ हुआ, जिसमें गलती अजमेर डेवलपमेंट अथॉरिटी की थी। डॉ.शर्मा ने 487.18 वर्गमीटर का भूखंड नीलामी में खरीदा था। उस भूखंड में प्राधिकरण के अधिकारियों की ग़लती से 91.16 वर्गमीटर का भूखंड गलती से शामिल हो गया। डॉ.शर्मा ने उक्त भूखंड में मकान बना लिया और रहने लगे। इसको लेकर प्राधिकरण ने डॉ.शर्मा के मकान पर बुलडोजर चलाकर ध्वस्त ही नहीं किया बल्कि पुलिस ने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया, जैसे वह शातिर बदमाश हो, उनके कपड़े फाड़ दिये गये व धक्के देकर पुलिस की वैन मे धकेल दिया गया। अब सवाल उठता है कि चार साल पहले इस भूखंड पर मकान का निर्माण कर लिया तो प्राधिकरण की नींद आज क्यों खुली ? प्राधिकरण के अधिकारियों की ग़लती का खामियाजा डॉ.शर्मा को क्यों भुगतना पड़ा ?
जिस तरह से विप्र समाज के एक प्रतिष्ठित डाक्टर के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार पुलिस ने किया, उसको लेकर अखिल भारतीय ब्राह्मण परिषद (रजि) का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होने के नाते भजन लाल शर्मा सरकार से पुरजोर मांग है कि इस प्रकरण में जितने भी पुलिस अधिकारी लिप्त है, उनको तुरंत प्रभाव से निलंबित किया जाए व विभागीय जांच कर प्राधिकरण के अधिकारियों पर समुचित कार्रवाई कर डॉ.शर्मा को उचित मुआवजा दिया जाए। यह हमला डॉ.शर्मा के उपर नहीं बल्कि विप्र समाज की इज्जत व अस्मिता पर हमला है। पुलिस की तालिबान कार्यवाही विप्र समाज के उस विश्वास पर हमला है, जो जनसंघ के समय से ही भाजपा का कोर बैंक रहा है। वैसे डॉ.कुलदीप शर्मा अजमेर में भाजपा चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष भी रहे हैं। विप्र समाज के सभी संगठनो का आह्वान है कि विप्र द्रोही इस कृत्य का विरोध करें। डॉ.कुलदीप शर्मा की प्रतिष्ठा को आघात लगा है, उसकी भरपाई तो मुश्किल है, वरन जो मकान जमींदोज किया है, उसके लिए उचित मुआवजा मिले व इस प्रकरण में लिप्त जितने भी अधिकारी हैं, उनका निलंबन कर विप्र समाज को जो घाव दिये है, उस पर मरहम लगाने का काम करें।