उपरोक्त मारवाड़ी कहावत समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के उस बयान को लेकर फिट बैठती है, जिसमें उन्होंने गौवंश को लेकर बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बयान दिया है। कन्नौज के एक समारोह में उन्होंने कहा कि भाजपा को दुर्गन्ध पसंद है, इसलिए गौशालाएं बनाई जा रही है। इतना ही नहीं आगे उन्होंने कहा कि आगामी 2027 के विधानसभा चुनावों में जब हमारी सरकार बनेगी तो इस दुर्गंध को बंद कर दिया जायेगा। यानी उनका सीधा तात्पर्य था कि गौशालाओं को बंद कर दिया जायेगा। गौशालाओं में जहां गौवंश का आसियाना है, अखिलेश यादव को दुर्गन्ध आती होगी लेकिन गौमाता के बिना मनुष्य के जीवन का चक्र अधूरा है। एक सनातनी के लिए गौमाता पूज्या है। हमारे वेद शास्त्र कहते हैं कि गौमाता में सभी देवता वास करते हैं। यदि कोई मनुष्य गौमाता की सेवा करता है तो यह ईश्वर की सेवा करने समान है। गाय का दूध अमृत के समान माना गया है। गौमूत्र अनेको आयुर्वेदिक औषधि में प्रयोग किया जाता है। गाय के गोबर की खाद बहुत ही उत्कृष्ट मानी गई है। यदि आर्थिक रूप से गौमाता के गुणों को देखें तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है। इसी के कारण प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिला है। सनातन धर्म में गाय को एक पशु न मानकर गौमाता का दर्जा दिया गया है। एक तरफ गौमाता को राष्ट्र माता का दर्जा देने की मुहीम चलाई जा रही है तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव को गौमाता में दुर्गंध आती है। सनातन धर्म में तो गोपाष्टमी के दिन हर घर में गौमाता की पूजा होती है। सनातन धर्म की वाहक गौमाता के लिए अखिलेश यादव ने जो अपमानजनक बयान दिया है, यह सीधे तौर पर सनातन धर्म को अपमानित करने वाला बयान है। अखिलेश यादव शायद यह भूल गये कि खुद यदुवंशी होने के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण के वंशज भी है। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं गौभक्त होने के साथ ही गौसेवा करने पर उनका नाम गोपाला भी था। अखिलेश यादव ने सनातन धर्म का तो अपमान किया ही है, साथ में यदुवंश का भी अपमान किया है क्योंकि अखिलेश यादव भी खुद यदुवंश से आते है। उनके 2027 में सत्ता में आने पर गौशालाओं को बंद करने की बात को सुनकर यही कहा जा सकता है कि अंधी मां क्यूं पूत को मुंडो देखगी ।
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