राजस्थान की भजन लाल शर्मा सरकार बड़े बड़े दावे करती है कि आमजन की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सरकार बहुत संवेदनशील है। आमजन की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर इस बजट में स्वास्थ्य केन्द्र व उप स्वास्थ्य केन्द्र आमजन की सेवा के लिए प्रस्तावित है लेकिन जब जिला मुख्यालय का बीडीके सरकारी अस्पताल के जो हालात हैं, जिसको लेकर सरकारी दावों पर प्रश्नचिन्ह उठने लाजिमी है।
सूत्रों की माने तो झुंझुनूं के समीपवर्ती गांव बाकरा के ओमप्रकाश अपनी चार साल की बेटी के लगातार उल्टियां होने के कारण उसको लेकर सरकारी बीडीके अस्पताल में इलाज के लिए लेकर आये। उन्हें आपातकाल में पर्ची बनवाने के लिए कहा गया। ओमप्रकाश अपनी चार साल की बीमार बेटी को गोद में लेकर करीब बीस मिनट तक काउंटर पर खडे रहे। पर्ची काउंटर का प्रिन्टर खराब बताया गया। करीब आधे घंटे बाद परिजनों के साथ जनाना अस्पताल के वार्ड में गये तो वहां का नजारा बहुत ही सोचनीय व गंभीर था। रात्रि के समय रेजीडेण्ट डाक्टर व नर्सिंग स्टाफ नदारद मिले। करीब एक घंटे दुखी होकर परिजन बच्ची को लेकर इमरजेंसी में लेकर आए लेकिन इलाज न होता देख दुखी होकर रात को 10.30 बजे बेटी को लेकर झुंझुनूं के निजी अस्पताल की तरफ रुख किया।
उपरोक्त घटना से हमारे सिस्टम पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं। जब जिला मुख्यालय के सरकारी अस्पताल की यह हालत है तो तहसील व गांवों में स्वास्थ्य केन्द्रों की हालतों का अंदाजा लगाया जा सकता है। विदित हो जिला कलेक्टर रामावतार मीणा लगातार सरकारी कार्यालयों का औचक निरीक्षण कर रहे हैं। अभी दो दिन पहले ही उन्होंने बीडीके अस्पताल का औचक निरीक्षण किया था, उसके बावजूद रेजीडेण्ट डाक्टर व नर्सिंग स्टाफ की अकर्मण्यता इस बात को इंगित करता है कि उनको किसी बात का भय नहीं है। शायद उन पर सरकार में बैठे आकाओं का वरदहस्त है, जिसके चलते उनको किसी प्रकार का भय नहीं है। इसका मूल कारण है कि भाजपा सरकार का गठन होने के बाद जिला मुख्यालय पर हर सरकारी विभाग में अपने चहेतों का स्थानांतरण करवा लिया गया। एक मारवाड़ी कहावत है कि सैया भये कोतवाल तो डर काहे का। इसी कहावत के चलते बीडीके अस्पताल में भी डाक्टर व नर्सिंग स्टाफ बेखौफ हैं। जिला कलेक्टर महोदय को इस मामले में संज्ञान लेकर आवश्यक कार्रवाई करनी होगी, जिससे अन्य कोई ओमप्रकाश अपनी बेटी के इलाज के लिए दुखी होकर निजी अस्पताल में महंगे इलाज करवाने को लेकर बाध्य न हो।