देश के धर्माचार्यों का राजनीति में प्रवेश इस बात का सूचक है कि राजनीतिक दल धर्म के कंधो पर बैठकर सत्ता तक पहुंचने की जुगत में है। दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इस चुनावी समर में बागेश्वर धाम के संत का चुनावी समर में कूदना क्या उनकी निजी महत्वाकांक्षा है या सचमुच ही देश के आवाम की चिंता है। अभी हाल ही में कुंभ में मची भगदड़ में मारे गये लोगों के बारे में बहुत ही असंवेदनशील बयान दिया था कि उनको मोक्ष की प्राप्ति हो गई है, जैसे मोक्ष का सर्टिफिकेट उनके द्वारा ही प्रदान किया जाता है। भगदड़ में लोगों के पैरों से कुचल कर मरने वालों को मोक्ष की संज्ञा देना कितना हास्यास्पद है। यदि इसी रास्ते से किसी व्यक्ति को मोक्ष मिलता है तो बागेश्वर धाम के संत को भी मोक्ष प्राप्त करने में देरी नहीं करनी चाहिए क्योंकि संत मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग को ही ढूंढने के लिए संत बनते हैं। धार्मिक प्रवचन करने वाले या कथा वाचन करने वाले जब आशाराम जैसे सजा याफ़्ता मुजरिम की पैरवी करने लगे तो उनको किस श्रेणी में रखा जाए, यह समझ से परे है। भजन गायक भजनों द्वारा ईश्वर की आराधना करने के बजाय धार्मिक राजनीतिक दलों का प्रचार करते नजर आते हैं। एक भजन गायक ने तो सारी हदें पार कर दी कि हम उनको लायेंगे, जो राम को लाए हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम हर सनातनी के आराध्य देव हैं, जिन्हे विष्णु के अवतार के रूप में इस धरती पर अवतार लिया था। क्या एक सामान्य व्यक्ति भगवान राम को लाए सकता है। यह सब लोगो की भावना से खिलवाड़ करना है। जब हरियाणा चुनाव में भाजपा ने टिकट नहीं दी तो आलोचना करने लगे तब शायद उनका भगवान श्रीराम के प्रति प्रेम काफूर हो गया था। कथावाचक कालान्तर में भी हुए हैं, मानस मर्मज्ञ श्री रामकिंकर जिन्होंने व्यास पीठ से कभी भी राजनीतिक बात नहीं की लेकिन आज व्यास पीठ से राजनीति की बातें हो रही है, यह व्यास पीठ का सरासर अपमान है। एक कथा वाचक की तो रील सोशल मिडिया पर रोज वायरल हो रही उनकी यह रील देखकर किसी भी दृष्टि से कथा वाचक की श्रेणी में नहीं आते हैं। इसी क्रम में उम्रकैद का एक मुजरिम, जो हर चुनावों मे पैरोल पर रिहा हो जाता है। दिल्ली चुनावों को लेकर उसको पैरोल पर छोडा गया है। उसके दलित समाज के लाखों अनुयाई हैं, उसी के मध्यनजर उसको जेल से बाहर निकाला है। वैसे इस देश में जब गणेश जी की प्रतिमा दूध पी जाती है तो अनुयाई बनाने में देर नहीं लगती। धर्माचार्य, कथा वाचको व भजन गायकों को व्यास पीठ की मर्यादा रखनी चाहिए, जिससे लोगों का सनातन धर्म के प्रति आस्था और सम्मान बढे न कि पाखंड कर सस्ती लोकप्रियता हासिल करें ।
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