शिक्षा के क्षेत्र में पिलानी को सिरमौर बनाने की अवधारणा को लेकर स्वर्गीय घनश्याम दास बिड़ला (जीडी बाबू) ने बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट पिलानी की स्थापना एक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में कलकत्ता मे 1929 में पंजीकृत किया था। इस प्रकार पिलानी में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और आगे विकास की नींव रखी गई। महात्मा गांधी की ट्रस्टशिप की अवधारणा ने एक दार्शनिक आधार के रुप मे कार्य किया। जीडी बाबू का सदैव ही अपनी मातृभूमि से लगाव रहा और इसी लगाव का परिणाम था कि पिलानी में मुफ्त अनिवार्य शिक्षा योजना प्रदान की। जीडी बाबू की इस परिकल्पना को साकार रूप दिया श्रद्धेय शुकदेव जी पांडे ने। पांडे जी का पिलानी को शिक्षा के क्षेत्र में सिरमौर बनाने में पांडेजी का अविस्मरणीय योगदान रहा। शिक्षा क्षेत्र में इस कार्य को लेकर जीडी बाबू ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय से सम्पर्क किया तो जीडी बाबू के समाजसेवा के उस विचार को मूर्तरूप देने के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के गणित के सहायक प्रोफेसर शुकदेव जी पांडे को धरातल पर उतारने के लिए राजी किया। पांडे जी के प्रति जीडी बाबू का सम्मान और आदर इसी बात से इंगित होता है कि बिरला ऑडिटोरियम के मुख्य द्वार पर स्वर्गीय शुकदेव पांडे जी की आदमकद मूर्ति लगी हुई है। बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती के प्रादुर्भाव के रूप में मनाया जाता है। इसलिए यह दिन मां सरस्वती को समर्पित है। बुध्दि की प्राप्ति के लिए, ज्ञान की प्राप्ति के लिए, संगीत व कला के क्षेत्र में उन्नति के लिए मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इसी मां सरस्वती के एक प्रांगण के रूप में विधा विहार परिसर बनाकर मां सरस्वती के मंदिर का सफेद संगमरमर से निर्माण करवाया, जिससे उस परिसर में केवल शिक्षा का वातावरण ही बना रहे लेकिन एक कहावत है कि मंदिर को प्रसिद्धि उसका पुजारी ही दिलाता है। शिक्षा के मंदिर के पुजारी पांडे जी के निधन के बाद इसकी कमान ऐसे निजी स्वार्थ से वशीभूत लोगों के हाथ में आ गई, जिनका शिक्षा के क्षेत्र से कभी दूर का नाता ही नहीं रहा। पिलानी में शिक्षा की वह चमक धीरे-धीरे फीकी होने के साथ ही वर्तमान में धूमिल हो गई। जिस शिक्षा के मंदिर में देश के हर कोने के अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने को लेकर गौरवान्वित होते थे, उस शिक्षा के मंदिर में एडमिशनो का अकाल पड़ गया। इसका मूल कारण अनुभवी व विद्वान शिक्षकों के बजाय अपने चहेतो को शिक्षा देने के लिए रखा गया। शिक्षा के मंदिर की कमान ऐसे अपरिपक्व लोगों के हाथों में आने से इसने अपने मूल स्वरूप को खो दिया। जिस सपने को लेकर जीडी बाबू ने शिक्षा का पौधारोपण किया था व अपनी लग्न, समर्पण व निष्ठा भाव से स्वर्गीय शुकदेव पांडे ने वट वृक्ष का रूप दिया, उसकी जड़ें खोखली करने में वर्तमान कारिंदो ने अपनी पूरी ताकत लगा दी। शायद जीडी बाबू व पांडे जी ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनके द्वारा की गई मेहनत का परिणाम यह होगा। जो पिलानी कभी शिक्षा में सिरमौर थी, आज विधा विहार की जगह विधा व्यवहार हो गया। जिस पिलानी ने देश को अनगिनत एथलीट, तैराक, बैडमिंटन, हाकी, बालीबाल, बास्केटबॉल के राष्ट्रीय स्तर व राज्य स्तर के नगीने दिए। वर्तमान कारिंदों की अकर्मण्यता से इन प्रतिभाओं का अकाल पड़ गया। शिक्षा के क्षेत्र में पिलानी की इस दुर्दशा को लेकर एक ही ज्वलंत प्रश्न उभर कर आता है कि क्या पिलानी अपने पुराने शिक्षा के स्वरूप का पुनः निर्माण कर पायेगा ? लेकिन इसका एक ही उत्तर होगा कि निष्काम, निस्वार्थ व निष्ठा के साथ समर्पित पांडे जी जैसे व्यक्तित्व के हाथों में कमान होगी तभी यह संभव हो पायेगा। बसंत पंचमी के पावन पर्व पर शिक्षा की देवी मां सरस्वती से यही मंगलकामना है कि पिलानी के उस पुराने स्वरूप को अपना आशीर्वाद देकर पुनः स्थापित करें, जिससे पिलानी व आसपास के लोगों के लिए सस्ती व उच्च कोटि की शिक्षा उपलब्ध हो सके।
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