उपरोक्त कहावत पिलानी के आवाम पर फिट बैठती है क्योंकि स्वर्गीय घनश्याम दास बिड़ला (जीडी बाबू) के देवलोकगमन के बाद पिलानी का आवाम सस्ती व उच्च क्वालिटी की शिक्षा से वंचित हो गया। जीडी बाबू की शिक्षा व उस समय के शिक्षकों के प्रति संवेदनशीलता इसी बात से इंगित होती है कि बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट के सेक्रेटरी की कमान ऐसे व्यक्ति के हाथों में आ गई, जो शिक्षको को अनुचित रूप से प्रताड़ित करते थे। उस समय शेखावाटी के मशहूर कार्टूनिस्ट, जो ड्राइंग के शिक्षक थे, उन्होंने एक कार्टून बनाकर जीडी बाबू को भेजी, उसमें मुंह उन सेक्रेटरी का था और नीचे का शरीर बंदर का था और हाथ में तलवार थी। विदित हो जीडी बाबू का साल में एक दो बार पिलानी का दौरा होता था। जब जीडी बाबू पिलानी दौरे पर आए तो सेक्रेटरी को बुलाकर कहा कि शिक्षकों को अनावश्यक प्रताड़ित न करें और वह कार्टून उनको दिखाई। यह वह कालखंड था, जब पिलानी का भारत में शिक्षा को लेकर विशिष्ट स्थान था। पिलानी में उच्च क्वालिटी की शिक्षा का सूर्य तो उसी दिन ढलान पर आ गया था, जब शिक्षा के इस वट वृक्ष को लगाने व सिचिंत करने वाले श्रद्धेय शुकदेव पांडे का देहावसान हो गया था क्योंकि एक मारवाड़ी कहावत "हंसा उड़ सरवर गया काग हुया प्रधान, चल पांड्या घर आपणै सिंह किसका जजमान" यानी कालांतर में बिरला एज्युकेशन ट्रस्ट की कमान उनके हाथों में आ गई, जिनको पिलानी व आसपास की भौगोलिक स्थिति का भी ज्ञान नहीं है। अपने चहेतो व चाटुकारिता करने वालों को शिक्षा देने के लिए रख लिया गया, जिससे शिक्षा का स्तर रसातल में पहुंच गया। शुकदेव जी पांडे ने जो शिक्षा का विशाल पेड़ अपनी मेहनत व लगन से विकसित किया था, वर्तमान कारिंदों ने उसकी टहनियां ही नहीं बल्कि उसकी जड़ें भी उखाड़ दी। यह शुकदेव जी पांडे की ही देन है कि आज भी स्वतन्त्रता दिवस पर बिरला बालिका विद्यापीठ का बैंड पिलानी का नाम रोशन कर रहा है। पांडे जी का कार्यकाल वह स्वर्णिम समय था, जब शिक्षा के साथ सांस्कृतिक गतिविधियां व खेलकूद के लिए भी यहां के विधालय मशहूर थे। विदित हो हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद भी हाकी के गुर सिखाने के लिए प्रशिक्षण के तौर पर पिलानी में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। यही कारण था कि पिलानी ने राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर हाकी, बास्केटबॉल, बालीबाल, बैडमिंटन, तैराक व एथलेटिक्स दिए। जीडी बाबू के सपनो को धराशाई कर निजी स्वार्थ में आकंठ डूबकर पिलानी व आसपास के आवाम पर स्कूले बंद करके कुठाराघात किया है। आखिर इन कारिंदों का क्या निजी स्वार्थ था कि इन स्कूलों को बंद कर दिया गया बल्कि आज भी अनगिनत प्राईवेट स्कूले संचालित है क्योंकि घाटे में तो कोई भी प्राइवेट स्कूल का संचालन नहीं कर सकता।
*क्रमशः आगामी कड़ी में .......*