मुस्लिम समुदाय सूर्य नमस्कार के आयोजन का बहिष्कार करें: जमियत उलेमा

AYUSH ANTIMA
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जयपुर (वसीम अकरम कुरेशी): जमियत उलेमा-हिन्द भारतीय मुसलमानों का प्राचीन संगठन है। जयपुर में संगठन की राज्य कार्यकारिणी ने एक प्रस्ताव के माध्यम से स्कूलों में सूर्य सप्तमी के उपलक्ष्य में समस्त विद्यालयों में विद्यार्थियों, अभिभावकों व अन्य लोगों से सामूहिक सूर्य नमस्कार के सरकारी आदेश की निन्दा करते हुए इसे धार्मिक मामलों में खुला हस्तक्षेप, संविधान में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता और सुप्रीम कोर्ट व अनेक उच्च न्यायालयों के आदेशों की स्पष्ट अवहेलना बताया। साथ ही मुस्लिम समुदाय से अपील की है कि वे 3 फरवरी सूर्य सप्तमी को विद्यार्थियों को स्कूल में न भेजें और इस समारोह का बहिष्कार करें।                                                          
उल्लेखनीय है कि निदेशक माध्यमिक शिक्षा राजस्थान ने 27 जनवरी को इस आशय का एक आदेश जारी किया है। संगठन के प्रदेश महासचिव अब्दुल वाहिद खत्री के अनुसार जमियत उलेमा-हिन्द की राज्य कार्यकारिणी ने स्पष्ट किया है कि बहुसंख्यक हिन्दु समाज में सूर्य की भगवान/देवता के रूप में पूजा की जाती है। इस अभ्यास में बोले जाने वाले श्लोक और प्रणामासन्न, अष्टांगा नमस्कार इत्यादि क्रियाएं एक इबादत का रूप है और इस्लाम धर्म में अल्लाह के सिवाय किसी अन्य की पूजा अस्वीकार्य है। इसे किसी भी रूप या स्थिति में स्वीकार करना मुस्लिम समुदाय के लिए सम्भव नहीं है। जमियत उलेमा-हिन्द का स्पष्ट मानना है कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में अभ्यास का बहाना बनाकर किसी विशेष धर्म की मान्यताओं को अन्य धर्म के लोगों पर थोपना संवैधानिक मान्यताओं और धार्मिक स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन है और एक घृणित प्रयास है, जिसका पूरी ताकत से विरोध किया जाएगा तथा देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार हम इसके खिलाफ संघर्ष करेंगे।

*ईमान व आस्था की हिफाजत करें*

जमियत उलेमा-हिन्द ने राज्य सरकार से अपील की है कि वे इस विवादास्पद आदेश को तुरन्त प्रभाव से वापस लेने की हिदायत संबंधित विभाग को जारी करे, इसलिए कि इस कदम से देश के लोकतांत्रिक ढांचे को नुकसान होगा और सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के स्लोगन पर सवालिया निशान लग जाएगा। वहीं मुस्लिम समुदाय से अपील की है कि वे अपनी नई पीढियों के ईमान व आस्था की हिफाजत करें और इस सिलसिले में किसी भी प्रकार के दबाव को स्वीकार न करें, क्योंकि भारतीय संविधान में अपनी धार्मिक आस्था और विश्वास पर अड़िग रहते हुए सबको शिक्षा प्राप्त करने की पूर्णतया आजादी प्राप्त है।

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