सरदार पटेल की विरासत को संजोते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

AYUSH ANTIMA
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भारत जब 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, आजादी के पीछे अंग्रेज एक खंडित उपमहाद्वीप छोड़कर गये थे। विभाजन की त्रासदी के साथ ही 560 से ज्यादा रियासते थी, उन रियासतों के शासको की महत्वाकांक्षा भी थी। देश की एकता के अभाव में यह स्वतन्त्रता खोखली नजर आ रही थी। ऐसे महत्वपूर्ण समय पर एकीकृत भारत की चुनौती को स्वीकार करने वाले लौह पुरुष के नाम से विख्यात देश के पहले उप प्रधानमंत्री व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे। अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति, दृढ़ संकल्प व दूरदर्शिता का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने सभी रियासतो का भारत में विलय करवाया, जिससे राष्ट्र को शक्ति मिली लेकिन यह राजनीति की विडंबना कहें कि राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत व राष्ट्र की एकीकृत करने वाले महान शख्सियत सरदार पटेल के अद्वितीय प्रयासों को वह मान्यता नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे।
सरदार पटेल के उस एकीकृत राष्ट्र की परिकल्पना को मान्यता दी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र ने, जिनकी राजनीतिक यात्रा और शासन के सिध्दांत में सरदार पटेल का किरदार स्पष्ट दिखाई देता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक भारत श्रेष्ठ भारत में अपने दृष्टिकोण के पीछे सरदार पटेल को ही पथ प्रदर्शक मानते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने सरदार पटेल के सार्थक कार्यों को सम्मानित करने का अभूतपूर्व काम किया था। उन्होंने अहमदाबाद में सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय स्मारक का जीर्णोद्धार करवाया। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हर साल 31 अक्टूबर को पटेल जयंती पर युवाओं के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित करने की नींव रखी। ऐसे आयोजनों से युवाओं के मन में राष्ट्रीय एकता का संचार हुआ। अपने प्रधानमंत्री के काल में नरेंद्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2018 को सरदार पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा का निर्माण करवाया। इस मूर्ति के निर्माण में भी राष्ट्रीय एकता का पाठ पढ़ने को मिलता है। इस मूर्ति के निर्माण में करीब 60 लाख गांवों से लोहा मंगवाया गया, जिससे आमजन का आत्मीय जुड़ाव इस प्रतिमा से बना रहे। सरदार पटेल किसान हितों के रक्षक होने के साथ ही किसानों के प्रतीक थे। सरदार पटेल के अधूरे सपने सरदार सरोवर बांध का निर्माण भी नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से ही संभव हो पाया। सरदार पटेल का एकीकृत भारत का सपना जम्मू-कश्मीर के मामले में साकार नहीं हो सका। वैसे राजनीति में अगर मगर का खेल होता है लेकिन यह कटु सत्य भी है, जिसको नकारा नहीं जा सकता है कि यदि सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते तो कश्मीर का मसला होता ही नहीं। जिस 370 धारा को नरेन्द्र मोदी ने खत्म किया, वह पंडित जवाहर लाल नेहरू व शेख अब्दुल्ला के दिमाग की उपज थी। नेहरू कश्मीर के मसले को संयुक्त राष्ट्र परिषद में ले गये, जो आज तक लटका हुआ है।

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