सत्ता की छाया से जनता की धूप तक उठते धर्मेंद्र राठौड़

AYUSH ANTIMA
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राजस्थान की राजनीति के बदलते परिदृश्य में धर्मेंद्र सिंह राठौड़ एक ऐसा नाम हैं, जो सत्ता की निष्ठा, समाज की समझ और रणनीति की सटीकता—इन तीनों का अनोखा संगम प्रतीत होते हैं। वे अशोक गहलोत के विश्वसनीय सहयोगी हैं, पर केवल भरोसेमंद चेहरा भर नहीं।
वे उस नई पीढ़ी के नेता हैं, जो गहलोत की परंपरा से उपजी है, पर अब अपनी पहचान गढ़ने के मोड़ पर खड़ी है। राजनीति की तीनों शक्तियाँ—पद, समाज और भविष्य की योजना राठौड़ के जीवन में समान रूप से चलती दिखाई देती हैं। यही कारण है कि वे राजस्थान कांग्रेस के लिए एक अदृश्य परंतु निर्णायक सूत्र बन गए हैं।

*सत्ता—गहलोत की राजनीति में एक सटीक मोहरा*

धर्मेंद्र सिंह राठौड़ की राजनीतिक परिपक्वता का सबसे बड़ा कारण उनका गहलोत कैंप में निरंतर भरोसा है। साल 2020 के पायलट-विद्रोह के दौरान जब कांग्रेस सरकार डगमगा रही थी, तब राठौड़ ने पर्दे के पीछे समन्वय और विधायकों के संपर्क-संवाद में निर्णायक भूमिका निभाई। वे गहलोत के क्राइसिस कम्युनिकेटर के रूप में सामने आए। न मंच पर बोले, न मीडिया में दिखे, पर सत्ता को स्थिर रखने में सक्रिय रहे। इसके बाद उन्हें राजस्थान पर्यटन विकास निगम (RTDC) का अध्यक्ष बनाया गया। यह नियुक्ति महज़ सम्मान नहीं थी, बल्कि गहलोत द्वारा उन्हें राज्यव्यापी नेटवर्किंग की कुंजी सौंपना था। राठौड़ ने इस पद को विकास के साथ-साथ राजनीतिक संदेशवाहक के रूप में प्रयोग किया। अजमेर, पुष्कर, बूंदी और जयपुर जैसे केंद्रों पर RTDC योजनाओं के माध्यम से उन्होंने गहलोत सरकार की स्थिरता का चेहरा प्रस्तुत किया। सत्ता की इस परिधि में रहकर उन्होंने संगठन की कार्यप्रणाली, नौकरशाही के तंत्र और नेतृत्व की भाषा को नज़दीक से समझा, एक ऐसा अनुभव जो अब उन्हें भविष्य के सत्ता-समीकरण में उपयोगी बनाता है।
उनके समाज व रणनीति कोण की चर्चा फिर कभी.......... 
*@ रुक्मा पुत्र ऋषि*

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