दुर्गुणों के दहन से लेकर सद्गुणों का आगमन हो: इस दिवाली के केवल दीयों की ही रोशनी नहीं

AYUSH ANTIMA
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यूँ तो भारतवर्ष त्योहारों का देश है लेकिन दीपावली का अपने आप में अत्यधिक महत्व है, जिससे सम्पूर्ण भारत वर्ष सकारात्मक ऊर्जा को लेता है और जीवन के नए पथ का सृजन करता है। मानव की लौकिक संस्कृति रही है कि त्योंहार पर जैसे उसका मन नाचने लगता है लेकिन अब समय है की हमें इस सबसे बड़े पर्व को केवल रावण को जलाने से ही इतिश्री नहीं कर लेनी चाहिए बल्कि बुराई के प्रतीक के अंत के साथ-साथ हमें अपने अंदर के दुर्गुणों का भी दहन कर देना चाहिए क्योंकि भारत वर्ष की जो अद्भुत परम्परा रही है, उसका धीरे-धीरे ह्रास हो रहा है, जो सम्पूर्ण जगत के लिए ख़तरनाक हो सकता है। फिर रावण ने भी मरते वक्त लक्ष्मण से जीवन की तीन महत्वपूर्ण बातें कहीं: पहला, शुभ कार्य में देरी न करें और अशुभ कार्य टालें; दूसरा, शत्रु या रोग को कभी छोटा न समझें क्योंकि छोटा शत्रु भी घातक हो सकता है और तीसरा, अपने जीवन के रहस्य या कमजोरियां किसी को न बताएं क्योंकि वही बाद में विनाश का कारण बन सकती हैं तो फिर जब बुराई के प्रतीक के रूप में रावण का दहन कर हर बार उसके बुरे होने को अहसास कराते हैं तो हमें वास्तविक दहन के रूप में अपने दुर्गुणों का भी दहन कर देना चाहिए और जिस प्रकार प्रभु श्रीराम उस पापात्मा का वध कर वापस अयोध्या लौटे, उसी भाँति हमें मानवता की पुनर्स्थापना करनी चाहिए। प्रभु श्रीराम दिव्य वो अलौकिक शक्ति है, जिसमें सम्पूर्ण चराचर जगत के कल्याण की भावना समाहित है क्योंकि राम सृष्टा भी राम सृष्टि भी है और राम दृष्टा भी है और राम दृष्टि भी है। इन्हीं पदचिह्नों पर चलकर हमें संकल्प लेना चाहिए की हम भी मर्यादित रहकर नवसृजन में अपनी महती भूमिका निभा सकते हैं।

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