चिड़ावा नगर पालिका प्रकरण जनता के हितों के लिए विरोध या निजी महत्वाकांक्षा

AYUSH ANTIMA
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वैसे तो भ्रष्टाचार एक ऐसा नायाब अस्त्र है कि किसी पर भी छोड़ा जा सकता है। यही अस्त्र चिड़ावा पंचायत समिति प्रधान इंद्रा डूडी पर छोड़ा गया था व एक सोची समझी साजिश के तहत रोहतास धागड़ को प्रधान की कुर्सी पर बैठा दिया गया लेकिन उच्च स्तरीय जांच में इंद्रा डूडी निर्दोष साबित हुई व दुबारा प्रधान की कुर्सी पर विराजमान हो गई। इन दिनों चिड़ावा नगर पालिका अध्यक्ष सुमित्रा सैनी भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर सुर्खियों में है। समाजसेवा के जरिए राजनीति में पदार्पण करना आम बात हो गई है। यदि समाजसेवा का ही जज्बा है तो बिना राजनीति में आये भी यह काम बसूखी हो सकता है लेकिन एक बार निवेश कर अच्छे रिटर्न के लिए राजनीति में आने की फिराक में समाजसेवी नजर आते हैं। इतिहास गवाह है कि समाजसेवा करने वाले महानुभावों ने समाजसेवा निस्वार्थ की व अनगिनत अस्पताल, स्कूल, धर्मशाला व कुंओ व बावड़ियों का निर्माण करवाया लेकिन आधुनिक समाजसेवियो ने केवल और केवल राजनीति में जाकर सत्ता प्राप्ति करना ही ध्येय बना लिया है। चिड़ावा नगर पालिका का कार्यकाल करीब करीब समाप्ति की ओर है तब जाकर पता लगा कि नगर पालिका में भ्रष्टाचार व्याप्त है। उन महानुभावों को तब दिखाई नहीं दिया जब नगर पालिका के ईओ के पद पर उन अधिकारियों को डिजायर करके लगाया गया, जिन पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप थे। यह विदित है कि नगर पालिका अध्यक्ष बिना ईओ की मिलीभगत भ्रष्टाचार नहीं कर सकता। यदि अध्यक्ष ने भ्रष्टाचार किया है तो उसके साक्ष्य कोर्ट में, एसीबी या सीबीआई को प्रस्तुत करने चाहिए न कि रोड पर नारे लगाकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करनी चाहिए। राजनिति में आरोप प्रत्यारोप एक आम बात है, जहां निजी हितों का टकराव होता है, वहां भ्रष्टाचार रुपी ब्रह्मास्त्र काम में लिया जाता है। राजनिति के इस कीचड में निश्चित रूप से जनसेवा के लिए कोई भी नहीं आता। नगर पालिका अध्यक्ष सुमित्रा सैनी भी दूध की धुली नहीं हो सकती लेकिन इस भ्रष्टाचार रूपी गंगा में ईओ के बिना गौते नही लगाए जा सकते हैं। यदि इन आरोपों में सच्चाई है तो सरकार व विभाग के उच्च अधिकारी के संज्ञान में लाया जा सकता है। चूंकि राजस्थान में डबल इंजन सरकार है और आरोप लगाने वाले भी भाजपा के ही नेता हैं तो उनको विपक्ष का सा व्यवहार नही करना चाहिए क्योंकि भाजपा की सरकार में जब भाजपा के नेताओं की सुनवाई न होना एक हास्यास्पद स्थिति को पैदा करना है लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि कहीं चिड़ावा पंचायत समिति प्रधान वाली बात न हो जाए। कुल मिलाकर इस विरोध प्रदर्शन से आमजन में यह चर्चा है कि यह विरोध निजी महत्वाकांक्षा को लेकर हो रहा है। जनता के हितों व चिड़ावा के विकास से इस विरोध का कोई लेना-देना नहीं है।

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