झुंझुनूं जिला भामाशाहों व संत महात्माओं की तपोभूमि को लेकर विख्यात है। जिले के प्रवासी भामाशाहों का गौभक्त प्रेम उनके संस्कारों से परिलक्षित होता है। प्रवासी भामाशाहों के पुर्वजों ने सामाजिक सरोकारों को लेकर अनगिनत कार्य करवाए व गौ सेवा को समर्पित रहे। उन्हीं संस्कारों का अनुसरण करते हुए जिले के भामाशाह उदारमना से गौशालाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करते रहते हैं। जिले मे अनगिनत गौ भक्त हैं, जिनके मन में गौ प्रेम सदैव ही रहता है लेकिन एक ज्वलंत प्रश्न बार बार जनता की अदालत में रखने का काम आयुष अंतिमा (हिन्दी समाचार पत्र) ने अपने लेखों के माध्यम से किया है कि अनगिनत गौशालाएं होने के बावजूद गौवंश खुद को बेसहारा व असहाय महसूस कर रहा है। नेताओं के उद्घोष सुनने को मिलते हैं कि गौवंश बचेगा तभी सनातन धर्म बच पायेगा लेकिन इस बेसहारा गौवंश की करुण पुकार सुनने वाला कोई नहीं है। अभी हाल ही में जिला कलेक्टर ने एक आदेश पारित किया, जिसमें स्थानीय प्रशासन जैसे नगर पालिका व पंचायत को पाबंद किया कि बेसहारा गौवंश को गौशाला तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उनकी होगी। यदि गोशालाए इन बेसहारा गौवंश को लेने से मना करते हैं तो उन पर कार्रवाई के तौर पर उनको मिलने वाले सरकारी अनुदान को रोक लिया जाएगा। अब यह आदेश यथार्थ के धरातल पर कितना खरा उतरता है यह तो आने वाला समय ही निर्धारित करेगा। गोपाष्टमी पर गौशालाओं में गौवंश को छप्पन भोग का प्रसाद लगाया जा रहा था, उनको चूनड़ी ओढ़ाकर पूजा अर्चना करने के फोटो वायरल हो रहे थे। गौवंश के प्रति गौ भक्तो का असीम प्रेम वास्तव में वंदनीय है लेकिन जो गौवंश सड़कों पर बेसहारा होकर कूड़ा करकट व लठ्ठ खाने को मजबूर हैं, उसकी करूण पुकार भी गौ भक्तो को सुननी चाहिए। बेसहारा गौवंश को सहारा देने की जिम्मेदारी सरकार की ही नहीं बल्कि उन गौ भक्तो की भी है, जिनका असीम प्रेम केवल और केवल गौशाला के गौवंश के प्रति ही दिखाई दे रहा था। गौवंश को बेसहारा छोड़ने के लिए कहीं न कहीं हम खुद जिम्मेदार है। सनातन धर्म की बातें सुनने में बहुत अच्छी लगती है लेकिन जब हमारा सभ्य समाज खुद के मां बाप को वृद्धाश्रमों में छोड़ देते हैं तो इन बेजुबान गौवंश की औकात ही क्या है। इस बेसहारा गौवंश के कारण बहुत से लोग अपाहिज होने के साथ ही जान से भी हाथ धो बैठे हैं। रात को इन बेजुबान बेसहारा गौवंश के कारण सड़क दुघर्टना भी बढ़ी है। गोपाष्टमी पर्व मनाना हर सनातनी का धर्म है लेकिन इसके मनाने की सार्थकता तभी होगी, जब एक भी बेसहारा गौवंश नही दिखाई देगा, सभी को गौशालाओ में आसियाना मिलेगा।
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