*राजस्थान में कोचिंग संस्थानों के नियमन हेतु उच्च शिक्षा विभाग की बैठक: संयुक्त अभिभावक संघ ने स्वागत किया*

AYUSH ANTIMA
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जयपुर (श्रीराम इंदौरिया): राजस्थान में कोचिंग संस्थानों की मनमानी और असंगठित व्यवस्था पर लगाम कसने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने एक अहम कदम उठाया है। राजस्थान कोचिंग सेंटर (कंट्रोल एंड रेगुलेशन) अधिनियम, 2025 को प्रभावी करने के बाद, अब उच्च शिक्षा विभाग इसके नियम तैयार करने की दिशा में आगे बढ़ चुका है। इसी क्रम में 28 अक्टूबर 2025 को प्रातः 11:30 बजे, शिक्षा संकुल, जेएलएन मार्ग, जयपुर में एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है, जिसकी अध्यक्षता संयुक्त सचिव (उच्च शिक्षा) डॉ.मुकेश कुमार शर्मा करेंगे। बैठक में शिक्षा विभागों के अधिकारियों के साथ-साथ प्रमुख कोचिंग संस्थानों — ऐलन, सीएलसी, नारायणा, उत्कर्ष क्लासेस आदि के प्रतिनिधि आमंत्रित किए गए हैं, साथ ही संयुक्त अभिभावक संघ, NISA तथा स्कूल क्रांति संघ जैसे अभिभावक और शिक्षा संगठनों को भी सहभागी बनाया गया है।
संयुक्त अभिभावक संघ, राजस्थान के प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने विभाग की इस पहल का स्वागत करते हुए कहा-“अभिभावकों के प्रतिनिधि संगठन होने के नाते हमारी विगत दो वर्षों से यह लगातार मांग रही थी कि सरकार कोई भी कानून बनाने से पहले एक संयुक्त बैठक बुलाए और सभी पक्षों से विचार-विमर्श के बाद ही निर्णय ले। दुर्भाग्यवश सरकार ने कानून पारित करने से पहले ऐसी बैठक नहीं की, लेकिन अब जब कानून बन चुका है और विभाग संयुक्त बैठक बुला रहा है, तो हम उसका भी स्वागत करते हैं। देर आए, दुरुस्त आए।” उन्होंने कहा कि अब भी छात्रों और अभिभावकों के हित में कई सुधार किए जा सकते हैं। “हम केवल छात्रों का नहीं, बल्कि अभिभावकों का भी पक्ष मजबूती से इस बैठक में रखेंगे। ज़रूरत है कि ये नियम सिर्फ़ कागज़ों पर न रहकर ज़मीन पर लागू हों। पारदर्शिता, जवाबदेही और सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोचिंग फीस, रिफंड नीति, मानसिक दबाव और रिज़ल्ट पॉलिसी जैसे मुद्दों पर स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाए जाने आवश्यक हैं।” संयुक्त अभिभावक संघ इस बैठक में छात्र सुरक्षा, पारदर्शी शुल्क संरचना, कोचिंग-स्कूल टाईअप की मनमानी पर रोक, और आत्महत्या रोकथाम तंत्र जैसे बिंदुओं पर ठोस सुझाव प्रस्तुत करेगा। संघ ने उच्च शिक्षा विभाग से यह भी आग्रह किया है कि नियम लागू करने से पहले अभिभावकों, शिक्षकों और मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों से भी परामर्श लिया जाए, ताकि व्यवस्था केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी संतुलित बने।

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